भारत ही नहीं अनेक अन्य विकासशील देशों में भी प्राय: हथियार सौदों से जुड़ा भ्रष्टाचार सुर्खियों में छाया रहता है। यह भ्रष्टाचार ज़रूर एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, पर इससे एक कदम आगे जाकर यह मुद्दा भी उठाना चाहिए कि भ्रष्टाचार के साथ-साथ हथियारों की दौड़ को ही समाप्त करने के अधिक बुनियादी प्रयास होने चाहिए।
दक्षिण एशिया मानव विकास रिपोर्ट ने इस बारे में काफी हिसाब-किताब किया कि कुछ हथियारों के खर्च की विकास के मदों पर खर्च से क्या बराबरी है। इस आकलन के अनुसार:-
एक टैंक = 40 लाख बच्चों के टीकाकरण का खर्च
एक मिराज = 30 लाख बच्चों की एक वर्ष की प्राथमिक स्कूली शिक्षा
एक आधुनिक पनडुब्बी = 6 करोड़ लोगों को एक वर्ष तक साफ पेयजल
इसके बावजूद एक ओर तो अधिक हथियारों का उत्पादन हो रहा है, तथा दूसरी ओर उनकी विध्वंसक क्षमता बढ़ती जा रही है।
केवल सेना के उपयोग के लिए एक वर्ष में 16 अरब बंदूक-गोलियों का उत्पादन किया गया – यानी विश्व की कुल आबादी के दोगुनी से भी ज़्यादा गोलियां बनाई गर्इं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तैयार की गई ‘हिंसा व स्वास्थ्य पर विश्व रिपोर्ट’ के अनुसार, “अधिक गोलियां, अधिक तेज़ी से, अधिक शीघ्रता से व अधिक दूरी तक फायर कर सकती हैं और साथ ही इन हथियारों की विनाश क्षमता भी बढ़ी है।” एक एके-47 रायफल में तीन सेकंड से भी कम समय में 30 राउंड फायर करने की क्षमता है व प्रत्येक गोली एक कि.मी. से भी अधिक की दूरी तक जानलेवा हो सकती है।
पिछले सात दशकों में विश्व की एक बड़ी विसंगति यह रही है कि महाविनाशक हथियारों के इतने भंडार मौजूद हैं जो सभी मनुष्यों को व अधिकांश अन्य जीवन-रूपों को एक बार नहीं कई बार ध्वस्त करने की विनाशक क्षमता रखते हैं। परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए गठित आयोग ने दिसंबर 2009 में जारी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि दुनिया में 23 हज़ार परमाणु हथियार मौजूद हैं, जिनकी विध्वंसक क्षमता हिरोशिमा पर गिराए गए एटम बम से डेढ़ लाख गुना ज़्यादा है। आयोग ने आगे बताया है कि अमेरिका और रूस के पास 2000 परमाणु हथियार ऐसे हैं जो बेहद खतरनाक स्थिति में तैनात हैं व मात्र चार मिनट में दागे जा सकते हैं। आयोग का स्पष्ट मत है कि जब तक कुछ देशों के पास परमाणु हथियार हैं, तब तक कई अन्य देश भी ऐसे हथियार प्राप्त करने का भरसक प्रयास करते रहेंगे।
आगामी दिनों में रोबोट हथियार या ए.आई. हथियार बहुत खतरनाक हथियारों के रूप में उभरने वाले हैं। अनेक विशेषज्ञों ने जारी चेतावनी में कहा है कि इससे जीवन के अस्तित्व मात्र का खतरा उत्पन्न हो सकता है। इन्हें आरंभिक स्थिति में ही प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए पर ऐसा प्रतिबंध लगाने में भी अनेक कठिनाइयां आ रही हैं। इस तरह के प्रतिबंधों के लिए ऐसे मुद्दों पर लोगों में जानकारी का प्रसार बहुत जरूरी है ताकि वे आगामी व वर्तमान खतरों की गंभीरता को समझ सकें।
अत: इन बढ़ते खतरों के बीच अब यह बहुत जरूरी हो गया है कि विश्व स्तर पर सभी तरह के हथियारों व गोला-बारूद को न्यूनतम करने का एक बड़ा अभियान बहुत व्यापक स्तर पर निरंतरता से चले। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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