पिछली सदियों में कई बार कई लोगों ने दावा किया है कि उन्हें जीसस क्राइस्ट का कफन मिला है। इनमें से सबसे मशहूर ट्यूरिन का कफन है जो 1578 से इटली के ट्यूरिन शहर में सेंट जॉन दी बैप्टिस्ट के कैथेड्रल में रखा है। हाल ही में वैज्ञानिकों ने इसका फॉरेंसिक अध्ययन करके बताया है कि यह कफन फर्जी है।
ट्यूरिन का कफन 13वीं सदी में प्रकट हुआ था। यह 14 फुट लंबा एक कपड़ा है जिस पर सूली पर चढ़े एक व्यक्ति की छवि नज़र आती है। वैसे तो वैज्ञानिक कई बार यह जता चुके हैं कि यह कफन वास्तविक नहीं है। वैज्ञानिक यह भी स्पष्ट कर चुके हैं कि यह ‘कफन’ चौदहवीं सदी में निर्मित किया गया था। एक बार फिर प्रयोगों के ज़रिए इस कफन को प्रामाणिक साबित करने की कोशिश की गई है।
यह प्रयोग ट्यूरिन श्राउड सेंटर ऑफ कोलेरेडो के वैज्ञानिकों ने किया है। उन्होंने कुछ वालंटियर्स को सूली पर बांधा और उन्हें रक्त से तरबतर कर दिया। यह एक मायने में मूल घटना को पुनर्निर्मित करने का प्रयास था। शोधकर्ताओं ने अपने प्रयोग के सारांश में बताया है कि उन्होंने कफन पर उभरी तस्वीर की मदद से यह पता लगाया कि सूली पर चढ़ाने की क्रिया को किस तरह अंजाम दिया गया होगा। वालंटियर्स का चुनाव भी तस्वीर में नज़र आने वाले व्यक्ति के डील-डौल के हिसाब से किया गया था। पूरे प्रयोग में पेशेवर चिकित्साकर्मी भी शामिल थे ताकि वालंटियर्स की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और आंकड़ों के विश्लेषण में मदद मिले।
इस अध्ययन ने पूर्व में किए गए एक अध्ययन के निष्कर्षों को चुनौती दी है। जर्नल ऑफ फॉरेंसिक साइंसेज़ में 2018 में प्रकाशित उस शोध पत्र के लेखकों ने माना था कि व्यक्ति को सूली पर चढ़ाते समय उसके हाथों को सिर के ऊपर क्रॉस करके रखा जाता था। इसे इतिहासकारों ने गलत बताया था। उस अध्ययन को करने वाले वैज्ञानिक मौटियो बोरिनी का कहना है कि नया अध्ययन चर्चा के योग्य है क्योंकि कम से कम हम भौतिक चीज़ों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। वैसे बोरिनी के मुताबिक ऐतिहासिक दस्तावेज़ और कार्बन डेटिंग से स्पष्ट हो चुका है कि यह कफन मध्य युग में कभी तैयार किया गया था।
कोलेरेडो सेंटर का अध्ययन जॉन जैकसन के नेतृत्व में किया गया है। जैकसन एक भौतिक शास्त्री हैं और 1978 में कफन से जुड़े एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण में शामिल थे। 1981 में प्रकाशित अध्ययन की रिपोर्ट में कहा गया था कि कफन पर दढ़ियल व्यक्ति की तस्वीर एक वास्तविक व्यक्ति की है जिसे सूली पर चढ़ाया गया था। जैकसन का यहां तक कहना था कि कफन पर जो निशान हैं वे ऐसे व्यक्ति द्वारा छोड़े गए हैं जो गायब हो गया था और जिसके शरीर से शक्तिशाली विकिरण निकलता था।
लेकिन लगता है कि कफन की प्रामाणिकता का मामला ले-देकर आस्था पर टिका है। लेकिन अन्य वैज्ञानिक सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि आस्था अलग चीज़ हैं और प्रामाणिकता अलग बात है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://3c1703fe8d.site.internapcdn.net/newman/gfx/news/hires/2018/shroudofturin.jpg