हमारी पृथ्वी के चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र मौजूद है। इसकी मदद से न केवल हमको दिशाओं का ज्ञान होता है बल्कि यह चुंबकीय क्षेत्र हमारे ग्रह को हानिकारक विकिरण और सौर हवाओं से बचाता भी है। लेकिन आज से 56 करोड़ वर्ष पहले यह चुंबकीय क्षेत्र लगभग गायब हो चुका था। लेकिन एक भूगर्भीय घटना के कारण यह बच गया। वैज्ञानिकों के अनुसार उस समय पृथ्वी का तरल केंद्र (कोर) ठोस होना शुरू हो गया था जिसके कारण चुंबकीय क्षेत्र वापस से मज़बूत हो गया।
वैज्ञानिकों को ग्रह के केंद्र की तत्कालीन संरचना का अंदाज़ रेत के दानों के आकार के क्रिस्टल को देखकर लगा। उन्होंने 56 करोड़ वर्ष पुराने प्लेजिओक्लेज़ और क्लिनोपायरॉक्सीन के नमूने लिए जो उनको पूर्वी क्यूबेक, कनाडा में मिले। इन नमूनों में लगभग 50 से 100 नैनोमीटर तक की चुंबकीय सुइयां मिलीं जो उस समय पिघली हुई चट्टान में चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में स्थिर हो गई थीं। चट्टानों के ठंडा होने के बाद ये सुइयां अरबों वर्षों तक सुरक्षित रखी रहीं और पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का रिकॉर्ड बन गर्इं।
इन छोटे-छोटे क्रिस्टल्स को मैग्नेटोमीटर से जांचने पर कणों का चार्ज बहुत कम पाया गया। वास्तव में, 56 करोड़ साल पहले, पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र आज की तुलना में 10 गुना अधिक कमजोर रहा था। आगे मापन से पता चला कि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के पलटने की आवृत्ति भी बहुत अधिक थी।
रोचेस्टर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन टारडूनो के अनुसार इस अध्ययन से पता चलता है कि उस समय पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र काफी असामान्य था। एक ऐसा समय भी था जब चुंबकीय क्षेत्र के निर्माण की प्रक्रिया (जियो-डाएनेमो) लगभग धराशायी हो गई थी।
पृथ्वी के शुरुआती दौर में धरती का केंद्र पिघली हुई अवस्था में था। फिर 2.5 अरब से 50 करोड़ साल पहले केंद्र का लोहा ठंडा होकर ठोस अवस्था में परिवर्तित होने लगा। जैसे ही आंतरिक कोर ने जमना शुरू किया सिलिकॉन, मैग्नीशियम और ऑक्सीजन जैसे हल्के तत्व कोर की बाहरी तरल परत में आ गए जिससे तरल पदार्थ और गर्मी का प्रवाह शुरू हुआ जिसे संवहन कहा जाता है। बाहरी कोर में द्रव की गति ने आवेशित कणों को गतिमान रखा, जिससे विद्युत धारा उत्पन्न हुई और विद्युत धारा ने चुंबकीय क्षेत्र को जन्म दिया। यही संवहन आज भी चुंबकीय क्षेत्र के लिए ज़िम्मेदार है। पृथ्वी की आंतरिक कोर का ठोस बनना अभी भी जारी है और आने वाले कई वर्षों तक ऐसा होता रहेगा।
एक संभावना यह व्यक्त की गई है कि कैम्ब्रियन युग में तेज़ जैव विकास का सम्बंध कमजोर चुंबकीय क्षेत्र से हो सकता है क्योंकि चुंबकीय क्षेत्र के कमज़ोर होने के चलते जो अधिक विकिरण धरती पर पहुंचा होगा उससे डीएनए की क्षति और उत्परिवर्तन दर ऊंची रही हो सकती है जिससे अधिक प्रजातियों के विकसित होने की संभावना है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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