जनवरी 24 के दिन बुलेटिन ऑफ एटॉमिक साइन्टिस्ट्स (बीएएस) ने अपनी कयामत की घड़ी को अपडेट करके बताया है कि मानवता कयामत के और नज़दीक पहुंच गई है। उनकी परिकल्पित कयामत की घड़ी के कांटे मध्य रात्रि से बहुत दूर नहीं हैं। इस घड़ी पर मध्य रात्रि के समय को ‘प्रलय’ की घड़ी माना गया है।
पिछले वर्ष कयामत की घड़ी के कांटों के अनुसार मध्य रात्रि में 2 मिनट का समय शेष रहा था। वह अब तक का सबसे नज़दीक समय था। 24 जनवरी को बीएएस ने घोषित किया कि कांटे इस वर्ष भी मध्य रात्रि से दो मिनट दूर ही रहेंगे। यह सही है कि घड़ी के कांटे आगे नहीं बढ़े हैं किंतु परमाणु हथियारों के प्रसार और जलवायु परिवर्तन की लगातार अधोगति आज भी चिंता के सबब बने हुए हैं। और गलत सूचनाओं और फेक न्यूज़ का बढ़ता चलन आग में घी का काम कर रहे हैं। बीएएस के प्रतिनिधियों का कहना है कि 2018 के बाद कांटे आगे नहीं बढ़े हैं, तो इसे स्थिरता का संकेत न मानकर दुनिया भर के नागरिकों और नेताओं के लिए चेतावनी का संकेत माना जाना चाहिए।
बीएएस के वैज्ञानिक साल में दो बार विश्व स्तर पर घटनाओं का विश्लेषण करके यह आकलन करने की कोशिश करते हैं कि हम कयामत से कितनी दूर या कितने नज़दीक हैं। 2018 में उन्होंने देखा था कि परमाणु युद्ध का मंडराता खतरा और वैश्विक तापमान में लगातार वृद्धि विश्व को विनाश की ओर धकेल रहे हैं। उनका कहना है कि इन खतरों ने एक खतरनाक और अनिर्वहनीय यथास्थिति का निर्माण कर दिया है। जितने लंबे समय तक हम इस असामान्य यथास्थिति से आंखें मूंदे रहेंगे, उतना ही हम खतरे के निकट पहुंचेंगे।
वैज्ञानिकों का कहना है कि यूएस और उत्तरी कोरिया के बीच परमाणु शब्दबाण तो थमे हैं किंतु दुनिया भर में परमाणु हथियारों पर निर्भरता बढ़ी है। ‘शीत युद्ध’ की मानसिकता ने परमाणु युद्ध से बचने के कई दशकों के प्रयासों पर पानी फेर दिया है। और तो और, यूएस और रूस के सम्बंध तनावपूर्ण बने हुए हैं। ये दो देश दुनिया के 90 प्रतिशत परमाणु हथियारों के मालिक हैं।
जहां तक जलवायु परिवर्तन का सम्बंध है, तो पिछले कुछ वर्षों का घटनाक्रम चिंताजनक रहा है। खास तौर से यूएस कार्बन उत्सर्जन को थामने में नाकाम रहा है और ऐसे विकास को बढ़ावा दे रहा है जो जीवाश्म र्इंधन पर निर्भर है। जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ता जा रहा है और 275 अध्ययनों के आधार पर एक रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि जलवायु का संकट सूखा, बाढ़, प्रदूषण और समुद्र तल में वृद्धि जैसे कारणों से लाखों लोगों का जीवन संकट में डाल देगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन प्रति वर्ष ढाई लाख लोगों के लिए जानलेवा साबित होगा और अगले 12 वर्षों में 10 करोड़ लोग अतिशय गरीबी में धकेले जाएंगे।
कयामत की घड़ी की कल्पना 1947 में की गई थी और उस समय यह मुख्य रूप से परमाणु खतरों का आकलन करती थी। वैसे वैज्ञानिकों का विश्वास है कि हम इस घड़ी को पीछे खिसका सकते हैं, बशर्ते कि दुनिया भर में इसके लिए प्रयास किए जाएं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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