आजकल चाय सही अर्थ में आम आदमी का पेय बन गया है। गरीब से गरीब व्यक्ति मेहमाननवाज़ी के लिए चाय ही पिलाता है। चाय का पौधा मूल रूप से चीन का निवासी है। एक दंतकथा के अनुसार 2732 ईसा पूर्व (आज से लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व) चीन का बादशाह शेन नुंग शिकार के लिए जंगल गया था। वहां खाना बनाते समय एक जंगली झाड़ी की कुछ पत्तियां उबलते पानी में गिर गर्इं। बादशाह को उस पानी का स्वाद पसंद आया और इस प्रकार उस पौधे की पत्तियों से चाय बनाने की शुरुआत हुई। उस समय चाय का सेवन प्रमुख रूप से एक दवा के रूप में किया जाता था। किंतु पेय के रूप में चाय का उपयोग वहां लगभग 1500 से 2000 वर्ष पूर्व के बीच होने लगा। 16वीं शताब्दी में पुर्तगाल के पादरी और व्यापारी चाय को युरोप लाए। 17वीं शताब्दी में ब्रिाटेन में चाय पीने का फैशन चल पड़ा और अंग्रेज़ों ने भारत में चाय के बागान लगा कर इसका उत्पादन शुरू किया।
चाय पीने से ताज़गी क्यों आती है? इसका कारण यह है कि चाय में कैफीन होता है जो तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित कर देता है। कैफीन के अलावा चाय में थियोब्रोमीन और थियोफायलीन जैसे तंत्रिका उत्तेजक पदार्थ होते हैं जो कैफीन की तुलना में कम मात्रा में होते हैं। चाय और कॉफी के पौधों में कैफीन की उपस्थिति उन्हें कीटों से बचाती है क्योंकि यह एक कीटनाशक भी होता है। कैफीन के विषैले होने के कारण इसके अत्यधिक सेवन से मृत्यु तक हो सकती है।
चाय या कॉफी पीने का एक नकारात्मक पहलू यह होता है कि तंत्रिका तंत्र के उत्तेजित हो जाने से नींद नहीं आती। जब नींद नहीं आती तब अकारण चिंता बढ़ती है। इसलिए कई लोग बिना कैफीन वाली कॉफी पीते हैं। कॉफी के समान चाय से भी कैफीन को हटाया जा सकता है किंतु इसके लिए चाय की पत्तियों को खौलते पानी में काफी देर तक रखना पड़ता है। इस प्रक्रिया से कैफीन के साथ चाय में मौजूद लाभदायक रसायन भी निकल जाते हैं। बिना कैफीन की कॉफी या चाय अगर तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित न करे तो ताज़गी महसूस नहीं होगी। फिर उन्हें पीने से क्या फायदा? इसके अलावा, कैफीन और अन्य रसायन हट जाने से इनका स्वाद भी बदल जाता है।
यदि चाय का ऐसा पौधा मिल जाए जिसमें कैफीन बिलकुल न हो या बहुत कम हो तो सोने में सुहागा वाली स्थिति बन जाएगी – चाय का स्वाद बना रहेगा और इससे होने वाले हानिकारक परिणामों से भी बचा जा सकेगा। 2011 में चीन के गुआंगडांग प्रांत में चाय का एक ऐसा पौधा मिला था जिसमें कैफीन नहीं था। इस पौधे की खोज के बाद चीनी वनस्पतिशास्त्रियों ने ऐसे ही अन्य चाय के पौधों की तलाश शुरू की। परिणामस्वरूप उन्हें दक्षिण चीन के फुजियान प्रांत में भी चाय का कैफीन-रहित पौधा मिला है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि कैफीन की अनुपस्थिति का कारण इन पौधों के कैफीन का निर्माण करने वाले जीन में परिवर्तन था। सन 2003 में कॉफी के भी दो ऐसे पौधे पाए गए थे जिनमें कैफीन प्राकृतिक रूप से अनुपस्थित था, किंतु इन्हें बड़े क्षेत्र में लगाना संभव नहीं हो पाया। संभव है कि बिना कैफीन वाले चाय के पौधों के साथ भी ऐसा ही हो। फिलहाल यह पहेली बनी हुई है कि यदि कैफीन कीटनाशक के रूप में पौधों की कीटों से रक्षा करता है तो इन पौधों ने ऐसे लाभदायक रसायन को क्यों त्याग दिया। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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