गणनाओं से पता चलता है कि हमारे ब्राहृांड का 85 प्रतिशत भाग ऐसे पदार्थ से बना है जो अदृश्य है। इसे डार्क मैटर कहते हैं क्योंकि यह प्रकाश के साथ कोई क्रिया नहीं करता। इसी वजह से इसके बारे में जानना एक मुश्किल चुनौती है। इसके बारे में वैज्ञानिक जो कुछ जानते हैं वह इसके गुरुत्वीय प्रभाव के आधार पर है – यानी डार्क मैटर का जो गुरुत्वीय असर दृश्य पदार्थ यानी बैर्योनिक मैटर पर होता है।
एक ताज़ा अध्ययन में विभिन्न निहारिकाओं में अदृश्य पदार्थ की मात्रा की गणना की कोशिश की गई। पूर्व में की गई गणनाओं के विपरीत ताज़ा अध्ययन का निष्कर्ष है कि ब्राहृांड की प्रारंभिक निहारिकाओं और अपेक्षाकृत हाल में बनी निहारिकाओं में डार्क मैटर का अनुपात लगभग बराबर ही है।
पूर्व में मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर एक्स्ट्राटेरेस्ट्रियल फिज़िक्स के खगोल शास्त्री राइनहार्ड गेंज़ेल के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन का निष्कर्ष था कि प्रारंभिक निहारिकाओं में डार्क मैटर की मात्रा नवीन निहारिकाओं की अपेक्षा कम थी।
ताज़ा अध्ययन डरहैम विश्वविद्यालय के अल्फ्रेड टाइली और उनके सहयोगियों ने किया है। यह अध्ययन प्रीप्रिंट पत्रिका आर्काइव्स में प्रकाशित हो चुका है और इसे रॉयल एस्ट्रॉनॉमिकल सोसायटी की पत्रिका मंथली नोटिसेस में प्रकाशन के लिए भेजा गया है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने विभिन्न निहारिकाओं में तारों की घूर्णन गति का अध्ययन किया। न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम के मुताबिक किसी भी निहारिका की परिधि का घूर्णन उसके मध्य भाग की अपेक्षा धीमा होना चाहिए। मगर 1960 के दशक में देखा गया था कि आकाशगंगा (वह निहारिका जिसमें हमारा सौर मंडल स्थित है) के किनारों पर स्थित तारों की गति काफी अधिक है। इसके आधार पर अनुमान लगाया गया था कि आकाशगंगा के आसपास डार्क मैटर का आवरण है जो इन तारों को तेज़ गति करवा रहा है।
टाइली व उनके साथियों ने आकाशगंगा से विभिन्न दूरियों पर स्थित निहारिकाओं के किनारों की घूर्णन गति के आंकड़ों को देखा तो पाया कि दूरस्थ निहारिकाओं और आकाशगंगा के पास की निहारिकाओं में तेज़ी से गति करते तारों के आधार पर तो लगता है कि नवीन निहारिकाओं और प्रारंभिक निहारिकाओं के आसपास डार्क मैटर लगभग एक-सी मात्रा में है। ऐसा माना जाता है कि दूरस्थ निहारिकाएं प्रारंभिक हैं जबकि हमारे आसपास की निहारिकाएं ज़्यादा हाल की हैं।
इन दो अध्ययनों के परिणामों में अंतर के कई कारण हैं और खगोल शास्त्री इन्हीं पर विचार कर रहे हैं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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