जलवायु परिवर्तन के साथ कई रोग तेज़ी से फैल रहे हैं। ऐसे ही रोगों में से एक है मलेरिया। मलेरिया मच्छरों में पाए जाने वाले प्लाज़्मोडियम परजीवी के कारण फैलता है, जो मच्छरों के काटने से इंसानों के खून में पहुंच जाता है। मलेरिया वैसे तो मात्र बुखार होता है लेकिन उचित इलाज न किया जाए तो इसका असर लंबे समय तक तथा गंभीर होता है।
प्लाज़्मोडियम परजीवी की पांच प्रजातियों में से फाल्सिपेरम अब तक की सबसे आम प्रजाति मानी जाती है, उसके बाद वाइवैक्स का नंबर आता है। अधिकांश मौतें फाल्सिपेरम के कारण हुई हैं, लेकिन हाल में इस बात के भी सबूत मिले हैं कि वाइवैक्स प्रजाति भी जानलेवा हो सकती है।
प्लाज़्मोडियम की जांच के लिए विभिन्न प्रकार के उपकरण उपलब्ध हैं। फिर भी मलेरिया की मानक जांच के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन, मूलभूत माइक्रोस्कोपिक जांच तथा रैपिड डाइग्नोस्टिक टेस्ट (आरटीडी) को प्रामाणिक मानता है। लेकिन इन जांचों की सीमाएं हैं। ये मलेरिया संक्रमण के बारे में बताती हैं, लेकिन विभिन्न परजीवियों में भेद नहीं कर पातीं। इसके कारण इलाज में देरी होती है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के अंतर्गत जबलपुर में कार्यरत राष्ट्रीय जनजाति स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान के निदेशक प्रोफेसर अपरूप दास तथा उनकी टीम ने सामान्य जांच विधि तथा आधुनिक पीसीआर तकनीक के द्वारा भारत के 9 राज्यों में 2000 से अधिक रक्त नमूनों की जांच की। उनका निष्कर्ष है कि मलेरिया की सटीक जांच के लिए डीएनए आधारित जांच विधि पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन या पीसीआर का विस्तृत इस्तेमाल किया जाना चाहिए। डॉ. दास तथा उनकी टीम ने पाया कि मलेरिया संक्रमण के 13 प्रतिशत मामलों में फाल्सिपेरम तथा वाइवैक्स दोनों प्रकार के परजीवी पाए गए हैं। जांच से यह भी पता चला कि है कि मलेरिया परजीवी की पी. मलेरिए नामक प्रजाति खतरनाक होती जा रही है।
गंभीर बात यह है कि एकाधिक प्रजातियों से होने वाले मलेरिया के लिए अब तक कोई सटीक जांच या उपचार विधि उपलब्ध नहीं है। आम तौर पर तकनीशियन एक प्रकार के परजीवी के के बाद दूसरे प्रकार की जांच नहीं करते।
इस सर्वेक्षण का निष्कर्ष यह निकला है कि वाइवैक्स की तुलना में फाल्सिपेरम की अधिकता है। इन दोनों परजीवियों के संयुक्त संक्रमण में वृद्धि हो रही है, जैसा पहले नहीं था। मलेरिए पहले ओड़िशा में ही सीमित था, लेकिन अब पाया गया है कि यह देश के दूसरे भागों में भी फैल रहा है। मच्छरों में कीटनाशकों तथा मलेरिया परजीवियों में दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध विकसित होना भी भारत में मलेरिया उन्मूलन की दिशा में सबसे बड़ी बाधा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार 2016 में दुनिया भर में मलेरिया के मामलों में 50 लाख की वृद्धि हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2030 तक मलेरिया के पूर्ण उन्मूलन की एक रणनीति तैयार की है। भारत स्वयं भी मलेरिया से छुटकारा पाना चाहता है। मलेरिया के मरीज़ों की संख्या के लिहाज़ से भारत पूरी दुनिया में तीसरे नंबर पर है। आशा है कि प्रोफेसर अपरूप दास तथा उनकी टीम के महत्वपूर्ण शोध तथा उचित समय पर सामने आए नतीजे 2030 तक मलेरिया उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करने में मददगार साबित होंगे। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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