अक्सर मकड़ी का जाला देखकर या उससे टकराने पर भी हमें उसकी ताकत का अंदाज़ा नहीं लगता। लेकिन मकड़ी का जाला मानव के बराबर हो तो वह एक हवाई जहाज़ को जकड़ने की क्षमता रखता है। हाल ही में वैज्ञानिकों ने इन रेशमी तारों की मज़बूती का कारण पता लगाया है।
मकड़ी के रेशम की स्टील से भी अधिक मज़बूती का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने परमाणु बल सूक्ष्मदर्शी की मदद से विषैली ब्राउन मकड़ियों के रेशम का विश्लेषण किया। इस रेशम का उपयोग वे ज़मीन पर अपना जाला बनाने और अपने अंडों को संभाल कर रखने के लिए करती हैं। एसीएस मैक्रो लेटर्स में प्रकाशित रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने बताया है कि जाले का प्रत्येक तार मानव बाल से 1000 गुना पतला है और हज़ारों नैनो तंतुओं से मिलकर बना है। और प्रत्येक तार का व्यास मिलीमीटर के 2 करोड़वें भाग के बराबर है। एक छोटे से केबल की तरह, प्रत्येक रेशम फाइबर पूरी तरह से समांतर नैनो तंतुओं से बना होता है। इस फाइबर की लंबाई करीब 1 माइक्रॉन होती है। यह बहुत लंबा मालूम नहीं होता लेकिन नैनोस्केल पर देखा जाए तो यह फाइबर के व्यास का कम से कम 50 गुना है। शोधकर्ताओं का ऐसा मानना है कि वे इसे और अधिक खींच सकते हैं।
वैसे पहले भी यह मत आए थे कि मकड़ी का रेशम नैनोफाइबर से बना है, लेकिन अब तक इस बात का कोई सबूत नहीं था। टीम का मुख्य औज़ार था ब्राउन रीक्ल्यूस स्पाइडर का अनूठा रेशम जिसके रेशे बेलनाकार न होकर चपटे रिबन आकार के होते हैं। इस आकार के कारण इसे शक्तिशाली सूक्ष्मदर्शी लेंस के नीचे जांचना काफी आसान हो जाता है।
यह नई खोज पिछले साल की एक खोज पर आधारित है जिसमें यह बताया गया था कि किस प्रकार ब्राउन रीक्ल्यूस स्पाइडर छल्ले बनाने की एक विशेष तकनीक से रेशम तंतुओं को मज़बूत करती है। एक छोटी–सी सिलाई मशीन की बदौलत यह मकड़ी रेशम के प्रत्येक मिलीमीटर में लगभग 20 छल्ले बनाती है, जो उनके चिपचिपे स्पूल को अधिक मज़बूती देती है और इसे पिचकने से रोकती है।
शोधकर्ताओं का मत है कि भले चपटे रिबन और छल्ला तकनीक सभी मकड़ियों में नहीं पाई जाती, किंतु रीक्ल्यूस रेशम का अध्ययन अन्य प्रजातियों के रेशों पर शोध का एक रास्ता हो सकता है। ऐसे अध्ययन से मेडिसिन और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में नई सामग्री बनाने के रास्ते बनाए जा सकते हैं।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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