गर्भावस्था जीव विज्ञान की एक पेचीदा पहेली रही है। गर्भावस्था के दौरान आश्चर्यजनक बात यह होती है कि मां का प्रतिरक्षा तंत्र भ्रूण को नष्ट नहीं करता जबकि भ्रूण में तमाम पराए पदार्थ भरे होते हैं। आम तौर पर प्रतिरक्षा तंत्र किसी भी पराई वस्तु पर हमला करके उसे नष्ट करने की कोशिश करता ही है। तो गर्भावस्था में ऐसा क्या होता है कि प्रतिरक्षा तंत्र शिथिल हो जाता है और प्रसव तक शिथिल रहता है?
कैम्ब्रिज के वेलकम सैंगर इंस्टीट्यूट की सारा टाइचमैन इसी पहलू का अध्ययन करती रही हैं। उनका कहना है कि जच्चा–बच्चा का संपर्क काफी पेचीदा होता है और हम इसे भलीभांति समझते भी नहीं हैं किंतु एक सफल गर्भावस्था के लिए यह निर्णायक होता है।
इसी संपर्क की क्रियाविधि को समझने के लिए टाइचमैन और उनके साथियों मां और भ्रूण की एक–एक कोशिका के बीच परस्पर क्रिया को समझने का रास्ता अपनाया। उन्होंने 70,000 सफेद रक्त कोशिकाओं तथा आंवल और गर्भाशय में बने अस्तर की कोशिकाओं को देखा। ये कोशिकाएं उन्हें ऐसी महिलाओं से प्राप्त हुई थीं जिन्होंने अपना गर्भ 6-14 सप्ताह में समाप्त कर दिया था। आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए उन्होंने प्रत्येक कोशिका की जीन–सक्रियता का आकलन किया और पता लगाया कि उसमें कौन–कौन से प्रोटीन उपस्थित हैं और इसके आधार पर तय किया कि वह कोशिका किस किस्म की है।
इस तरह से उन्हें 35 किस्म की कोशिकाओं का पता चला। इनमें से कुछ पहले से ज्ञात थीं। इनमें से कुछ ऐसी भ्रूणीय कोशिकाएं थीं जो मां के ऊतकों में प्रवेश करके रक्त नलियों का विकास शुरू करवाती हैं जिनके माध्यम से मां और भ्रूण का सम्बंध बनता है। उन्हें अपनी खोज में कुछ ऐसी प्रतिरक्षा कोशिकाएं भी मिली जिन्हें नेचुरल किलर सेल कहते हैं। ये आम तौर पर संक्रमित कोशिकाओं और कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करती हैं।
जब इन अलग–अलग कोशिकाओं की परस्पर क्रिया को देखा गया तो पता चला कि कुछ घुसपैठी भ्रूणीय कोशिकाएं मां की कोशिकाओं को ऐसी प्रतिरक्षा कोशिकाएं बनाने को उकसाती हैं जो प्रतिरक्षा तंत्र की शेष कोशिकाओं पर अंकुश का काम करती हैं। टाइचमैन की टीम ने नेचर शोध पत्रिका में रिपोर्ट किया है कि मां की कुछ नेचुरल किलर सेल शांति सेना का काम करती हैं और अन्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं को भ्रूण पर हमला करने से रोकती हैं। ये ऐसे रसायन भी बनाती हैं जो भ्रूण के विकास में मदद करते हैं और रक्त नलिकाओं के जुड़ाव बनवाते हैं।
शोधकर्ताओं का मत है कि अभी उन्होंने मां और भ्रूण की कोशिकाओं की सारी अंतर्क्रियाओं का अध्ययन नहीं किया है और न ही यह एक टीम के बस की बात है। लिहाज़ा उन्होंने एक ऑनलाइन डैटाबेस स्थापित किया है ताकि समस्त शोधकर्ता इस दिशा में काम को आगे बढ़ा सकें। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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