लाखों लोग दुर्घटना या हिंसा की वजह से पंगु हो जाते हैं। इनमें से कई लोगों के मेरु रज्जु में क्षति होती है जिसकी वजह से मांसपेशियां ठीक–ठाक रहते हुए भी वे चलने–फिरने में अशक्त हो जाते हैं। मेरु रज्जु यानी स्पाइनल कॉर्ड हज़ारों तंत्रिकाओें को गूंथकर बनी एक रस्सी जैसा होता है और रीढ़ की हड्डी में से गुज़रता है। यह मस्तिष्क से जुड़ा होता है तथा मांसपेशियों से संकेत प्राप्त करता है और उन्हें काम करने के संदेश देता है।
हाल ही में नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक शोध पत्र के मुताबिक इस तरह की क्षति से ग्रस्त लोगों को चलने–फिरने में मदद की जा सकती है। वैसे तो कई शोधकर्ता स्पाइनल क्षति से लकवाग्रस्त लोगों के लिए कोई उपचार ढूंढने हेतु जंतुओं पर प्रयोग करते रहे हैं। लेकिन जंतु प्रयोगों के परिणाम मनुष्यों के लिए उपयोगी साबित नहीं हुए हैं। उदाहरण के लिए, मेरु रज्जु में बाहर से विद्युत संदेश देकर चूहों तथा कुछ अन्य जंतुओं में चलने–फिरने की क्षमता बहाल करने में सफलता मिली है लेकिन मनुष्यों में यह तकनीक कारगर नहीं रही है।
ताज़ा शोध में भी विद्युतीय संकेतों का उपयोग किया गया है किंतु एक प्रमुख अंतर यह रहा कि लगातार विद्युत संकेत देने की बजाय टांगों की अलग–अलग मांसपेशियों को एक विशेष क्रम में विद्युत उद्दीपन प्रदान किए गए। कोशिश यह रही है कि चलने के दौरान हर कदम उठाने में काम आने वाली मांसपेशियों को क्रमबद्ध ढंग से उत्तेजित किया जाए।
इस तरह से तीन गंभीर रूप से पीड़ित व्यक्तियों में चलने–फिरने की क्षमता बहाल की जा सकी। ये तीन लोग सिर्फ प्रयोगशाला में नहीं, बल्कि सामान्य परिस्थितियों में भी चहलकदमी कर पाए। और तो और, कुछ दिनों के बाद बाहरी विद्युत संकेत बंद कर देने के बाद भी वे चल–फिर पाए।
वैसे शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने जो कुछ हासिल किया है उसे मात्र एक उदाहरण के रूप में, अवधारणा के एक प्रमाण के रूप में देखा जाना चाहिए। स्पाइनल क्षति में बहुत विविधता होती है। इसलिए हर व्यक्ति के लिए विद्युतीय उद्दीपनों का क्रम अलग–अलग होगा और उसका निर्धारण व्यक्ति–विशेष पर प्रयोग करके ही करना होगा। अर्थात अभी इस तकनीक के इस्तेमाल के लिए विशेष सुविधाओं की ज़रूरत होगी और इसके चलते यह काफी महंगी साबित हो सकती है। इसके अलावा, फिलहाल यह थोड़े से लोगों को ही उपलब्ध हो पाएगी। किंतु, महंगा ही सही, एक रास्ता तो मिला है और आगे बढ़ने की संभावना नज़र आ रही है।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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