ब्लू व्हेल और उसके नज़दीकी रिश्तेदार ही चंद ऐसे जीव हैं जो भोजन प्राप्त करने के लिए बेलीन का उपयोग करते हैं। बेलीन केरेटीन नामक पदार्थ की कंघीनुमा रचनाएं है जिनकी मदद से व्हेल अपना सूक्ष्मजीव भोजन हासिल करती है। ये व्हेल करती यह हैं कि पानी में मुंह खोलकर ढेर सारा पानी मुंह में भर लेती हैं और फिर बेलीन को बंद करके पानी को बाहर फेंकती हैं। पानी तो निकल जाता है लेकिन छोटे–छोटे जीव अंदर रह जाते हैं जो व्हेल का भोजन बन जाते हैं। एक तरह से बेलीन छानकर भोजन प्राप्त करने का एक तरीका है।
वैसे व्हेल के शुरुआती पूर्वजों में आज की किलर व्हेल की तरह दांत होते थे। वैज्ञानिक इस गुत्थी को सुलझाने की कोशिश कर रहे थे कि व्हेल में बेलीन कैसे विकसित हुए। एक परिकल्पना यह है कि बेलीन का विकास दांतों से ही क्रमिक रूप से हुआ है। जैसे कि वाशिंगटन में मिले 3 करोड़ वर्ष पुराने व्हेल के एक जीवाश्म के अध्ययन के मुताबिक इनमें पैने, बागड़नुमा दांत थे। इनके बीच में थोड़ी जगह खाली होती थी, जिससे वे भोजन अलग करती होंगी। एक अन्य परिकल्पना के अनुसार व्हेल कुछ समय तक भोजन प्राप्त करने के लिए दांतों और बेलीन दोनों का उपयोग करती रही होंगी।
मगर हाल ही में कशेरुकी जीवाश्म विज्ञान की वार्षिक बैठक में प्रस्तुत व्हेल की एक लगभग समूची खोपड़ी के जीवाश्म का विश्लेषण प्रस्तुत किया गया जो इन दोनों परिकल्पनाओं को झुठला देता है।
जॉर्ज मेसन विश्वविद्यालय के पुरा–जीव वैज्ञानिक कार्लोस पेरेडो और उनके साथी मार्क उहेन कहना है कि ओरेगन में 1970 के दशक में मिले व्हेल के जीवाश्म के अध्ययन से पता चलता है कि पहले व्हेल ने अपने दांत गंवा दिए थे और बाद में स्वतंत्र रूप से उनमें बेलीन विकसित हुए। ये दो संरचनाएं कभी साथ–साथ नहीं रहीं।
शोधकर्ताओं ने 3 करोड़ साल पुरानी व्हेल की खोपड़ी के अंदर वाले हिस्से का सीटी स्कैन किया। इसमें ना तो उन्हें दांत मिले और ना ही बेलीन को सहारा देने वाली हड्डी। मगर और बारीकी से अध्ययन करने पर पाया कि इसमें भोजन हासिल करने का अलग ही तंत्र मौजूद था: चूषण तंत्र।
पहले तो उन्हें इस बात पर यकीन नहीं हुआ किंतु खोपड़ी के आकार ने बात साफ कर दी। खोपड़ी का यह आकार शक्तिशाली मांसपेशियों को सहारा देता होगा जो चूसने में मददगार रही होंगी। पूरी बात की पुष्टि इस आधार पर हुई कि यह जीवाश्म दांत वाली व्हेल और बेलीन वाली व्हेल के बीच के समय का है। अर्थात बेलीन के विकास से पहले व्हेल अपने दांत गंवा चुकी थी।
मोनाश यूनिवर्सिटी के वैकासिक जीवाश्म विज्ञानी एलिस्टेयर इवांस का कहना है कि वे भी ऐसे ही निष्कर्ष पर पहुंचे थे। उन्होंने 2016 में दांत वाली बेलीन व्हेल पर अध्ययन किया था। इस अध्ययन के अनुसार व्हेल अपने दांतों की जगह चूसकर भोजन ग्रहण करती थी। उनका कहना है कि ओरेगन में मिला व्हेल का जीवाश्म हमारे अनुमान को पुख्ता करता है। और बेलीन के विकास की कड़ी जोड़ता है। उनके अनुसार बेलीन का विकास अधिक भोजन हासिल करने के लिए हुआ है। पेरेडो का कहना है कि यह लगभग 2.3 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ होगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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