पिछले कुछ दशकों में हुए जलवायु परिवर्तन और पेड़–पौधों पर इसके असर को समझने के लिए एक सर्वथा नया रुाोत सामने आया है – खुले में होने वाले खेलकूद के वीडियो।
पारिस्थितिकी विज्ञानी और सायकल रेस प्रेमी पीटर डी फ्रेने टूर्स ऑफ फ्लैंडर्स नामक सायकल रेस के 1980 के दशक के वीडियो देख रहे थे। अचानक रेस ट्रैक के पीछे के नज़ारों ने उनका ध्यान खींचा। उन्होंने देखा कि रेस ट्रैक के पीछे के पेड़ों पर पत्तियां नहीं हैं। जबकि वर्तमान रेसों में ट्रैक के पीछे के पेड़ों पर पत्तियां दिखती थीं। रेस के इन वीडियो का उन्होंने जलवायु परिवर्तन और पेड़–पौधों पर होने वाले प्रभाव के बीच सम्बंध को समझने के लिए इस्तेमाल किया।
अब तक इस तरह के अध्ययनों में परंपरागत हर्बेरियम (वनस्पति संग्रह) का उपयोग किया जाता था। लेकिन हर्बेरियम डैटा के साथ मुश्किलें हैं। उत्तरी अमेरिका और युरोप को छोड़कर बाकी जगहों पर हर्बेरियम नमूने बहुत कम हैं। एक विकल्प के तौर पर वैज्ञानिकों ने पर्यावरण के सचित्र विवरण वाले लेखों और किताबों का उपयोग शुरू किया। स्मार्ट फोन की सहज उपलब्धता से लोगों द्वारा यादगार दिनों और स्थलों की खींची गई तस्वीरों को भी अध्ययन के डैटा की तरह उपयोग करने पर विचार किया। किंतु यह डैटा काफी बिखरा हुआ है और इसे इकट्ठा करना मुश्किल है।
टूर्स ऑफ फ्लैंडर्स बेल्जियम की लोकप्रिय सायकल रेस है। 260 कि.मी. लंबी इस रेस की खास बात यह है कि यह हर साल अप्रैल में ही आयोजित होती है। यानी अध्ययन के लिए हर वर्ष का एक ही समय का डैटा आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही उन्हीं पेड़–पौधों का अलग–अलग कोण से अवलोकन जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने फ्लेमिश रेडियो एंड टेलीविज़न ब्राॉडकास्टिंग आर्गेनाइज़ेशन के अभिलेखागार से रेस के 200 घंटे के वीडियो लिए। इन वीडियो से उन 46 पेड़ों और झाड़ियों को चिंहित किया जिनका अलग–अलग कोण से अवलोकन संभव था। इस तरह 525 चित्र निकाले। इन चित्रों के विश्लेषण में उन्होंने पाया कि 1980 के दशक में अप्रैल माह के शुरुआत में किसी भी पेड़ या झाड़ी पर फूल नहीं आए थे। और लगभग 26 प्रतिशत पेड़–पौधों पर ही पत्तियां थीं। लेकिन साल 2006 के बाद के उन्हीं पेड़ों में से 46 प्रतिशत पर पत्तियां आ चुकी थीं और 67 प्रतिशत पर फूल आ गए थे। शोधकर्ताओं ने जब वहां के स्थानीय जलवायु परिवर्तन के डैटा को देखा तो पाया कि 1980 से अब तक औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है।
गेंट विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञानी लोविस का कहना है कि इस तरह के अध्ययन आम लोगो को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव समझाने में महत्वपूर्ण हो सकते हैं। बढ़ते हुए तापमान के आंकड़े बताने या ग्राफ पर दर्शाने से बात वैज्ञानिकों की समझ में तो आ जाती है मगर आम लोग, खासकर राजनेता, इसे इतनी गंभीरता से नहीं देखते। इन प्रभावों के फोटो और वीडियो इसमें मददगार हो सकते हैं।(स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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