भारत के एक शीर्ष अंतरिक्ष वैज्ञानिक शंकरलिंगम नंबी नारायणन को सुप्रीम कोर्ट ने निर्दोष पाया है। नारायणन पर आरोप थे कि उन्होंने इसरो के अंतरिक्ष कार्यक्रम की गोपनीय जानकारी पाकिस्तान को बेची है।
साल 1994 में इसरो के वैज्ञानिक नारायणन और डी. शशिकुमार पर इसरो की गोपनीय जानकारी पाकिस्तान को बेचने के आरोप लगाए गए थे। इस मामले में सभी की गिरफ्तारी हुई और मुकदमे चले। 1996 में स्थानीय अदालत ने नारायणन और अन्य सभी लोगों को आरापों से बरी कर दिया था। सीबीआई ने भी तब जांच में उन्हें निर्दोष पाया था। किंतु उसके बाद भी, 20 सालों तक, अन्य अदालतों में मुकदमे चलते रहे। नारायणन का कहना है कि “हम सभी की जिंदगी बिखर गई और हम सभी ने बहुत कुछ झेला है।”
साल 2001 में, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने नारायणन को 10 लाख रुपए की अंतरिम राहत देने का आदेश दिया था। किंतु वह भी उन्हें 11 साल बाद मिली, दो बार उच्च न्यायालय में गुहार लगाने के बाद।
14 सितंबर को हुई सुनवाई में शीर्ष न्यायालय ने नारायणन पर लगे आरोपों को मनगढ़ंत बताया है और उन्हें 50 लाख रुपए बतौर हर्ज़ाना देने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि केरल राज्य पुलिस द्वारा शुरू की गई कार्रवाई संदेहपूर्ण थी। इस पूरी प्रक्रिया में पुलिस और जांच दल का व्यवहार नारायणन के लिए पीड़ादायक था। सुप्रीम कोर्ट ने सम्बंधित पुलिस अफसरों पर ज़रूरी कार्रवाई का भी आदेश दिया है।
इस मामले ने इसरो को अंदर तक हिला दिया। दरअसल 1990 के दशक में भारत सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका से क्रायोजेनिक तकनीक खरीदने की बात कर रहा था। इस तकनीक से ईंधन को कम तापमान पर तरल अवस्था में स्टोर किया जा सकता है। अंतत: भारत सोवियत संघ से तकनीक खरीदने के लिए सहमत हो गया। लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने रूस पर भारत को तकनीक ना देने का दबाव बनाया। इस तरह यह महत्वपूर्ण तकनीक भारत के हाथ निकल गई।
नारायणन को शक है कि इसमें अंतर्राष्ट्रीय साज़िश है। इसमें भारत की खुफिया एजेंसियों की भी भूमिका रही है। इससे इसरो की अंतरिक्ष योजनाओं में लगभग 15 साल की देरी हो गई।
असल में भारत में इस तकनीक के आने से उम्मीद थी कि भारत से उपग्रह प्रक्षेपण नासा या युरोपीय संस्थाओं के मुकाबले कम कीमत पर किए जा सकेंगे। आज उपग्रह प्रक्षेपण में भारत का महत्वपूर्ण स्थान है लेकिन भारी उपग्रहों को छोड़ने में स्थान बनाने में अभी वक्त लगेगा, क्योंकि भारत ने कुछ ही वर्षों पहले इस तकनीक में महारत हासिल की है। नारायणन शीर्ष अदालत के फैसले से खुश हैं। देर से ही सही, दोषमुक्त करने के लिए उन्होंने कोर्ट का आभार व्यक्त किया है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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