हाल ही में न्यूरोसाइंटिस्ट रोज़र कीविट को एक जर्नल के संपादक मंडल का सदस्य बनने का न्यौता मिला। उन्होंने उस मंडल के सदस्यों में महिलाओं और पुरुषों का अनुपात देखा। मंडल में 21 पुरुष और 3 महिला सदस्य थे। लिंग अनुपात में इतने अंतर को कारण बताते हुए उन्होंने मंडल का सदस्य बनने से इंकार कर दिया। रोज़र कीविट कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी में जूनियर फैकल्टी हैं और उन वैज्ञानिकों में से है जो पेशेवर क्षेत्र में महिलाओं की कम उपस्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए अवसरों को अस्वीकार करते रहे हैं।
अक्सर अकादमिक सभाओं में वक्ता, संपादक मंडल के सदस्यों या अन्य अकादमिक पदों पर पुरुषों की तुलना में महिलाओं की उपस्थिति बहुत कम होती है। इन जगहों पर किन्हें आमंत्रण देना है, यह तय करने वाले एक–दो ही व्यक्ति होते हैं। इन जगहों को पुरुषोचित कहा जाने लगा है। ट्विटर व अन्य सोशल मीडिया के माध्यम से वैज्ञानिक अब महिला–पुरुष के अनुपात में अंतर के प्रति आवाज़ उठाने लगे हैं। कुछ वेबसाइट (जैसे Bias Watch Neuro और All Male Panels) इस समस्या को उजागर करते हैं। और इसी का नतीजा है कि पिछले कुछ सालों में इन क्षेत्रों में लिंग भेद दर्शाने के लिए वैज्ञानिक उन्हें मिलने वाले अवसरों को अस्वीकार कर रहे हैं। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के सूक्ष्मजीव वैज्ञानिक जोनाथन इसेन ने सबसे पहले, साल 2014 में पुरुष प्रधान संस्थाओं में शामिल होने से इंकार कर दिया था। उसके बाद से उन्होंने कई पुरुष–प्रधान मीटिंग्स के बारे में अपने ब्लॉग में लिखना शुरू किया।
विज्ञान के क्षेत्र में लिंग असमानता के मामले में जागरूकता आई है। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के पुरासमुद्र वैज्ञानिक हीदर फोर्ड और उनके साथियों ने साल 2014 से 2016 के दौरान होने वाली सभी अमेरिकन जियोफिज़िकल मीटिंग्स में महिला–पुरुष वक्ताओं का अनुपात देखा। उन्होंने पाया कि पुरुषों के मुकाबले महिला वक्ता बहुत कम थी।
यू बायोम की संपादकीय निदेशक सूक्ष्मजीव वैज्ञानिक एलिज़ाबेथ बिक का कहना है कि उन्होंने सभाओं और अन्य जगहों पर वक्ताओं के तौर पर आमंत्रित लोगों में महिलाओं का अनुपात पहले से बेहतर देखा है, खास तौर से सूक्ष्मजीव विज्ञान के क्षेत्र में। उन्होंने इस क्षेत्र में में काम करने वाली महिलाओं की सूची भी प्रकाशित की है ताकि पुरुष–प्रधानता की समस्या ना हो। फिर भी कई सभाओं में एक भी महिला की भागीदारी देखने को नहीं मिलती और ना ही वे सभाएं इसमें कोई बदलाव करना चाहती। अलबत्ता, कुछ बोर्ड व सभाएं इस तरह का असंतुलन बताए जाने पर स्वीकार करते हैं और बदलाव भी करते हैं।
जोनाथन इसेन का कहना है कि एक–एक व्यक्ति के स्तर पर इसे हल नहीं किया जा सकता है। संस्थाओं, विभागों, समाज, और पत्रिकाओं को मिलकर ही इस समस्या को सुलझाना होगा। कीविट का कहना है कि संपादक मंडल में महिलाओं की ज़्यादा भागीदारी से जर्नल को ही फायदा होगा। यदि आपका संपादक मंडल एकरस होगा तो आपके द्वारा प्रकाशित शोधपत्रों में भी एकरसता होगी, जो विज्ञान की दृष्टि से अच्छा नहीं है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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