पिछले वर्षों में किए गए अध्ययनों से इस बात के प्रमाण मिल रहे हैं कि समुद्र में घुलित कार्बन डाईऑक्साइड की बढ़ती मात्रा समुद्री जीवन को प्रतिकूल प्रभावित कर सकती है। मसलन, हाल ही में एक्सेटर विश्विद्यालय के शोधकर्ताओें द्वारा किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि समुद्री पानी में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से मछलियों की सूंघने की क्षमता प्रभावित होती है।
एक्सेटर वि·ाविद्यालय के कोसिमा पोर्टियस के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने मछलियों को कार्बन डाईऑक्साइड के अलग-अलग स्तरों पर रखकर प्रयोग किए। एक पानी में गैस का स्तर वर्तमान स्तर के बराबर था जबकि एक पानी में स्तर को बढ़ाकर इस सदी के अंत में अपेक्षित स्तर पर कर दिया गया। गौरतलब है कि पानी में कार्बन डाईऑक्साइड घुलने पर पानी की अम्लीयता बढ़ती है। प्रयोग में देखा गया कि इस तरह अम्लीयता बढ़ने पर मछलियों की सूंघने की क्षमता कमज़ोर पड़ जाती है। वे कम तैरती हैं और आसपास कोई शिकारी आए, तो भांप नहीं पातीं।
नेचर क्लायमेट चेंज नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित यह अध्ययन पहले किए गए इसी तरह के अध्ययनों के परिणामों की पुष्टि करता है। पूर्व में किए गए एक अध्ययन में पता चला था कि कार्बन डाईऑक्साइड की बढ़ी हुई मात्रा मछलियों की नाक पर सीधे असर करने के अलावा उनके तंत्रिका तंत्र को भी प्रभावित करती है। एक अन्य अध्ययन का निष्कर्ष था कि समुद्री पानी की बढ़ती अम्लीयता मछलियों की सुनने की क्षमता को कमज़ोर करेगी।
इन अध्ययनों के मिले-जुले परिणाम दर्शाते हैं कि भविष्य में मछलियों को एक नहीं, कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। वे समस्याओं के इस अंबार से कैसे और कितनी हद तक निपट पाएंगी, कहना मुश्किल है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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