आम तौर पर चलनियां ऐसी होती हैं कि उनमें से छोटे कण तो निकल जाते हैं जबकि बड़े कण रुक जाते हैं। गेहूं, चावल की चलनी के अलावा चाय छननी भी तो यही करती है। मगर साइन्स एडवांसेज़ जर्नल में शोधकर्ताओं ने एक ऐसी चलनी का विचार पेश किया है जो इससे ठीक उल्टा काम करती है। वह बड़े-बड़े कणों को निकल जाने देती है और छोटे-छोटे कणों को रोक लेती है।
दरअसल, शोधकर्ताओं के द्वारा बनाई गई यह चलनी कणों की छंटाई उनकी साइज़ के आधार पर नहीं करती बल्कि उनमें उपस्थित गतिज ऊर्जा के आधार पर करती है। जिन कणों की गतिज ऊर्जा ज़्यादा होती है वे इस चलनी को पार कर जाते हैं।
यह चलनी एक ऐसी झिल्ली है जो तरल पदार्थ से बनी है और यह तरल पदार्थ पृष्ठ तनाव नामक बल से अपनी जगह टिका रहता है। जैसे साबुन के पानी की झिल्ली बनती है। शोधकर्ताओं ने इस झिल्ली का निर्माण सोडियम डोडेसिल सल्फेट को पानी में घोलकर किया है। जब कोई अधिक गतिज ऊर्जा वाला कण इस झिल्ली से टकराता है तो वह झिल्ली को चीरकर पार निकल जाता है। पृष्ठ तनाव की वजह से कण के निकल जाने के बाद झिल्ली वापिस जुड़कर साबुत हो जाती है।
शोधकर्ताओं ने ऐसी कई झिल्लियां बनार्इं जिनके पृष्ठ तनाव अलग-अलग थे। इसके बाद इस झिल्ली पर अलग-अलग ऊंचाइयों से कांच या प्लास्टिक के मोती टपकाए गए। यह देखा गया कि अधिक ऊंचाई से गिरने वाले मोती या अधिक वज़न वाले मोती झिल्ली के पार निकल जाते हैं जबकि कम ऊंचाई से गिरने वाले या कम वज़न वाले मोती ऊपर ही अटक जाते हैं।
गौरतलब है कि किसी भी वस्तु की गतिज ऊर्जा दो बातों पर निर्भर करती हैं। पहली है उसका द्रव्यमान और दूसरी है उसकी गति। इसलिए भारी कणों को ज़्यादा ऊंचाई से गिराया जाए तो उनमें गतिज ऊर्जा ज़्यादा होती है और वे झिल्ली पर इतना बल लगा पाती हैं कि उसे चीर दें।
शोधकर्ताओं ने तरह-तरह से प्रयोग करके ऐसी झिल्ली के लिए गणितीय समीकरण भी विकसित किए हैं। उनका कहना है कि इस झिल्ली का उपयोग मच्छरों, जीवाणुओं, धूल के कणों और यहां तक कि गंध के अणुओं को रोकने में किया जा सकेगा। ऐसी झिल्ली चिकित्सा की दृष्टि से काफी उपयोगी साबित हो सकती है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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