पृथ्वी से डायनासौर का अस्तित्व 6.6 करोड़ वर्ष पूर्व समाप्त हो गया था। किंतु जीव वैज्ञानिकों और जीवाश्म वैज्ञानिकों के प्रयासों से हम इनके बारे में बहुत कुछ जान पाए हैं। और ये डायनासौर अब भी हमारे बीच विज्ञान की रोचक कथाओं और एनीमेशन फिल्मों के रूप में ‘जीवित’ हैं।
सभी डायनासौर प्रजातियों में सबसे बड़ा और मांसाहारी डायनासौर टायरेनोसौरस रेक्स (टी.रेक्स) रहा है। इसे ‘आतंकी छिपकलियों का राजा’ भी कहा जाता है। इसमें बड़े आकार के सिर द्वारा, बेहद मज़बूत जांघों और ताकतवर पूंछ का संतुलन किया जाता था। 2011 में प्रकाशित एक शोध से यह ज्ञात हुआ है कि इनमें शरीर की बनावट और उसका संतुलन इतना गज़ब का था कि अपनी विशाल काया के बावजूद टी. रेक्स 20 से 40 किलो मीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकते थे। टी. रेक्स की अगली टांगों में दो–दो उंगलियां भी थी। परंतु अगली टांगें कमज़ोर थी। टांगों की कमज़ोरी की भरपाई उन्होंने जबड़ों की बेहतर पकड़ से कर ली थी। इस तरह टी. रेक्स बेहद सफल शिकारी रहे होंगे।
पर कई पिक्चरों और मॉडल्स में उनकी लपलपाती जीभ दिखाई जाती है। तो क्या वे अपनी जीभ से बर्फ के गोलों और लालीपॉप्स को चूस या चाट सकते थे, जैसे हम करते हैं। क्या वे आइसक्रीम के कोन के किनारों से बहती–टपकती आइसक्रीम को चाटने का मज़ा ले सकते थे?
वैज्ञानिकों को लगता है कि टी. रेक्स ऐसा नहीं कर सकते थे क्योंकि उनकी जीभ काफी हद तक निचले जबड़े से जुड़ी हुई थी। हाल ही में एक नए शोध ने डायनासौर के चित्रकार एवं मॉडल बनाने वाले विशेषज्ञों की कला में खामियों की विवेचना की। एनिमेटर्स प्राय: टी. रेक्स को आधुनिक छिपकलियों के समान जीभ लपलपाते दिखाते हैं। किंतु वैज्ञानिकों को लगता है कि यह चित्र गलत है।
सरिसृप परिवार में सांप एवं कई छिपकलियां जीभ बाहर निकालकर अनेक कार्यों को अंजाम देते हैं। सभी सांपों में तो जीभ काफी लंबी तथा सिरे से द्विशाखित होती है। शिकार की गंध के कण हवा से पकड़कर लपलपाती जीभ उन्हें ऊपरी जबड़ों के समीप स्थित गंध संवेदी अंग जेकबसंस आर्गन में ले जाती है। कुछ गंध संवेदी तंत्रिकाएं इस अंग से मस्तिष्क में संदेश पहुंचा कर शिकार की पहचान बताने में मदद करती है।
केमेलियॉन जैसे गिरगिट में तो जीभ बेहद लंबी, चूषक युक्त और चिपचिपी भी हो गई है। कुछ दूर बैठे शिकार पर अचानक हमला कर उसे पकड़ने का कार्य हाथ–पैर के बजाय बहुत लंबी जीभ से ही बहुत कुशलता से संपन्न होता है। जीभ की मांस–पेशियां ही शिकार को खींचकर जबड़ों के हवाले कर देती हैं।
कुछ रेगिस्तानी छिपकलियों में तो जीभ मुंह से बाहर निकलकर आंखों की साफ सफाई और गर्मी में थूक को माइस्चेराइज़र्स की तरह लगाने में मददगार होती है।
लेकिन भले ही उपरोक्त सभी आधुनिक सरिसृप जीभ को हवा में लहराने और अनेक कार्य करने में माहिर हैं परंतु भीमकाय टी. रेक्स ऐसा नहीं कर सकते थे। जीभ और होंठ जैसे नरम अंग जीवाश्म नहीं बन पाते और जीवाश्मीकरण की प्रक्रिया में बेहद आसानी से नष्ट हो जाते हैं। इसलिए वैज्ञानिकों को जीवाश्मित जीभ तो नहीं मिली परंतु जीभ को आकार देने वाली निचले जबड़े की छोटी एवं मज़बूत हड्डियों के समूह हयॉड (Hyoid) का अध्ययन अवश्य किया गया है। वैज्ञानिकों ने डायनासौर्स की हयॉड के साथ ही पक्षियों और मगरमच्छ जैसे डायनासौर के निकटतम रिश्तेदारों में भी जीभ लपलपाने की प्रवृत्ति को देखा। डायनासौर्स एवं मगरमच्छों की हयॉड हड्डियों की समानता के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला की डायनासौर्स की जीभ मगरमच्छों के समान ही निचले जबड़े के तालू में दृढ़ता से जुड़ी हुई होगी और इसका बाहर निकलना संभव नहीं रहा होगा।
कशेरुकी जीवाश्म शास्त्र की विशेषज्ञ, जैक्सन स्कूल ऑफ जियोलॉजी एवं टेक्सास विश्वविद्यालय की प्रोफेसर जूलिया क्लार्क के अनुसार अधिकांश लोग डायनासौर्स की शरीर रचना और उनकी जीवन शैली को शायद नहीं समझ पाते और उन्हें लपलपाती जीभ वाला दिखा देते हैं। चित्रकारों के मन में यह गलत धारणा बनी हुई है कि डायनासौर्स वर्तमान छिपकलियों जैसे ही थे। वास्तव में पृथ्वी पर उनके अब तक के सबसे नज़दीकी रिश्तेदार पक्षी एवं मगरमच्छ परिवार के सदस्य हैं। खास करके आधुनिक पक्षियों में तो जीभ असाधारण रूप से विविधता से भरी एवं गतिशील है। जीभ को अनेक कार्य एवं दिशाओं में मोड़ने की खूबी का मुख्य कारण जटिल हयॉड हड्डी है जो जीभ के अगले सिरे तक आधार देने का कार्य करती है।
डायनासौर एवं मगरमच्छ परिवार के सदस्यों में हयॉड एक जोड़ीदार छोटी, सरल एवं छड़ के समान संरचनाएं भर हैं। उपरोक्त दोनों ही जीवों में हयॉड उनकी पेशियों तथा संयुक्त करने वाले ऊतकों से पूरी लंबाई में आधार से जुड़ी रहती है। उड़ने वाले टाइरोसौरस एवं आधुनिक पक्षियों में भी हयॉड हड्डी एक समान लगती है। परंतु वैज्ञानिकों को लगता है कि टाइरोसौरस तथा डायनासौर का उद्विकास बिल्कुल भिन्न हुआ है। हवा में उड़ने वाले टाइरोसौरस की लपलपाती जीभ भोजन के नए प्रकार के कारण रही होगी। वैसे भी आधुनिक मगरमच्छों की काटने तथा निगलने की प्रवृत्ति में लपलपाती जीभ का कोई खास कार्य नहीं रह जाता है। इसलिए डायनासौर एवं मगरमच्छ अपने नज़दीकी रिश्तेदारों और कज़िन्स के समान जीभ को लपलपाकर चाटने की प्रक्रिया को अंजाम नहीं दे सकते थे। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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