मेक्सिको के चियापास प्रांत में एक शहर है सैन क्रिस्टोबल। यहां काफी बारिश होती है। किंतु लोगों को पेयजल मुश्किल से मिलता है। लोगों को टैंकरों से पानी खरीदना पड़ता है। तो हालत यह है कि कई शहरवासी पानी की बजाय कोका कोला पीते हैं। एक स्थानीय बॉटलिंग प्लांट द्वारा बेचा जाने वाला यह कोका कोला ज़्यादा आसानी से मिल जाता है और दाम में लगभग पानी के बराबर है।
नतीजतन, मेक्सिको सॉफ्ट ड्रिंक की खपत में दुनिया का अग्रणी देश है और चियापास प्रांत मेक्सिको में अव्वल है। सैन क्रिस्टोबल के रहवासी प्रतिदिन औसतन 2 लीटर सोड़ा पी जाते हैं। इसके स्वास्थ्य पर असर भी हुए हैं।
2013 से 2016 के बीच चियापास में डायबीटीज़ की वजह से मृत्यु दर 30 प्रतिशत बढ़ी। आज वहां यह मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। प्रति वर्ष 3000 मौतों के लिए ज़िम्मेदार इस रोग से निपटने में वहां के स्वास्थ्य कर्मियों के पसीने छूट रहे हैं। लोग इसके लिए कोका कोला कारखाने को ही जवाबदेह मानते हैं। इस कारखाने को प्रतिदिन 12 लाख लीटर पानी उलीचने की अनुमति है। यह अनुमति उसे दस वर्ष पहले केंद्र सरकार के साथ एक अनुबंध के तहत मिली थी। इसके खिलाफ जन आक्रोश बढ़ता जा रहा है और पिछले वर्ष लोगों ने प्रदर्शन भी किया था।
दूसरी ओर, कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि उनकी कंपनी को बेवजह बदनाम किया जा रहा है, पानी के अभाव का वास्तविक दोषी तो तेज़ शहरीकरण और घटिया नियोजन है। कुछ वैज्ञानिक भी मानते हैं कि इलाके के कुएं सूखने के पीछे जलवायु परिवर्तन की भूमिका है। गौरतलब है कि पूरे मेक्सिको में कोका कोला के बॉटलिंग व बिक्री के अधिकार फेम्सा नामक कंपनी के पास हैं जो लेटिन अमेरिका में भी कोका कोला बेचती है। यह एक विशाल बहुराष्ट्रीय कंपनी है और बहुत शक्तिशाली खिलाड़ी है। तो ऐसा लगता है कि मेक्सिको के लोगों को पानी मिलेगा या नहीं, यह तर्कों से नहीं बल्कि शक्ति प्रदर्शन से तय होगा। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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