ये हिचकियां निकालना बंद करो।
– मैं नहीं कर सकती।
– क्यों नहीं कर सकती?
– क्योंकि ये हिचकियां नहीं, टूरेट सिंड्रोम है।
इन डायलॉग ने आपको हालिया रिलीज़ फिल्म हिचकी की याद दिला दी होगी। हिचकी फिल्म के आने से पहले मैं इस शब्द से वाकिफ नहीं थी। आप में से कइयों के लिए भी ये शब्द अनसुना रहा होगा। फिल्म देखी तो टूरेट सिंड्रोम के बारे में और जानने का मन हुआ। कंप्यूटर खोला और जुट गई नेट से जानकारी इकट्ठा करने में। आप भी टूरेट सिंड्रोम के बारे में जानना चाहेंगे…
टूरेट सिंड्रोम यह नाम फ्रांसीसी चिकित्सक, जॉर्ज गिलेस डे ला टूरेट के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने पहली बार 19वीं सदी में इस बीमारी के लक्षणों का विवरण दिया था।
टूरेट सिंड्रोम एक तंत्रिका सम्बंधी विकार है। इसमें इंसान के मस्तिष्क के तंत्रिका नेटवर्क में कुछ गड़बड़ी हो जाती है जिससे वे अनियंत्रित हरकतें करते हैं या अचानक आवाज़ें निकालते हैं। इन्हें टिक्स कहा जाता है। बांह या सिर को मोड़ना, पलकें झपकाना, मुंह बनाना, कंधे उचकाना, तेज़ आवाज़ निकालना, गला साफ करना, बातों को बार–बार कहने की ज़िद करना, चिल्लाना, सूंघना आदि टिक्स के प्रकार हैं।
टूरेट सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्तियों में टिक्स के पहले अजीब–सी उत्तेजना होती है और टिक्स हो जाने के बाद थोड़ी देर के लिए राहत मिलती है। पर कुछ देर बाद फिर वही उत्तेजना पैदा होने लगती है। इन लक्षणों पर उन लोगों का कोई नियंत्रण नहीं रहता।
टूरेट सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति के बौद्धिक स्तर या जीवन प्रत्याशा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन अपनी अनियंत्रित हरकतों के कारण उन्हें कई बार शर्मिंदगी और अपमान का सामना करना पड़ता है जिससे उनका रोज़मर्रा का कामकाज और सामाजिक जीवन बहुत ज़्यादा प्रभावित होता है।
टूरेट सिंड्रोम के कारणों के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। शोध के अनुसार, मानव के मस्तिष्क के बेसल गैंग्लिया वाले हिस्से में गड़बड़ी के कारण टूरेट सिंड्रोम के लक्षण विकसित होते हैं। बेसल गैंग्लिया शरीर की ऐच्छिक गतिविधियों, नियमित व्यवहार या दांत पीसने, आंखों की गति, संज्ञान और भावनाओं जैसी आदतों को नियंत्रित करने में मदद करता है।
कुछ अन्य शोध के अनुसार टूरेट सिंड्रोम के मरीज़ों में बेसल गैंग्लिया थोड़ा छोटा होता है और डोपामाइन तथा सेरोटोनिन जैसे रसायनों के असंतुलन के कारण भी यह समस्या उत्पन्न होती है। यह व्यक्ति के आसपास के वातावरण से भी प्रभावित होता है।
टूरेट सिंड्रोम में बिजली का झटका जैसा लगता है लेकिन यह सनसनाहट ज़्यादा देर तक नहीं रहती है बल्कि आती–जाती रहती है। डॉक्टर अभी भी निश्चित तौर पर यह नहीं समझ पाए हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है। टूरेट सिंड्रोम के आधे मरीजों में अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर (यानी एकाग्रता का अभाव और अति सक्रियता) के लक्षण दिखाई देते हैं जिसके कारण ध्यान देने, एक जगह बैठने और काम को खत्म करने में परेशानी होती है। टूरेट सिंड्रोम के कारण चिंता, भाषा सीखने की क्षमता में कमी (डिसलेक्सिया), विचारों और व्यवहार को नियंत्रित करने की क्षमता में कमी आदि समस्याएं भी हो सकती हैं। तनाव, उत्तेजना, कमज़ोरी, थकावट या बीमार पड़ जाना इस सिंड्रोम को और गंभीर बना देते हैं।
यह आनुवंशिक है यानी यदि परिवार में किसी व्यक्ति को टूरेट सिंड्रोम हो तो उसकी संतानों को भी टूरेट सिंड्रोम होने की संभावना रहती है। लेकिन टूरेट सिंड्रोम से पीड़ित एक ही परिवार के व्यक्तियों में इसके लक्षण अलग–अलग हो सकते हैं।
अमूमन कई बच्चों में ये टिक्स उम्र के साथ अपने आप चले जाते हैं पर लगभग 1 प्रतिशत बच्चों में ये स्थायी रूप में रह जाते हैं। लड़कियों की तुलना में लड़कों में ये ज़्यादा होते हैं।
वैसे तो टूरेट सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है, लेकिन टिक्स को नियंत्रित किया जा सकता है। दवाइयों को प्राथमिक उपचार के रूप में दिया जाता है। किंतु इन दवाइयों से थकावट, वज़न बढ़ना, संज्ञान सुस्ती जैसे दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। दवाइयों के अलावा व्यवहारगत उपचार भी दिया जाता है जिससे टिक्स के प्रभाव और तीव्रता को कम किया जाता है।
व्यवहारगत उपचार में टिक्स के पैटर्न और आवृत्ति की निगरानी की जाती है और उन उद्दीपनों को पहचानने की कोशिश की जाती है जिनसे टिक्स उत्पन्न होते हैं। इसके बाद टिक्स को संभालने के विकल्प सुझाए जाते हैं (उदाहरण के लिए, गर्दन के झटके को कम करने के लिए ठुड्डी को नीचे करते हुए गर्दन को सीधा खींचना)। ऐसे उपाय टिक्स के कारण पैदा हुई उत्तेजनाओं से मुक्ति पाने में मददगार होते हैं। मरीज़ और उसके परिवार की काउंसलिंग की जाती है ताकि वे समाज और घर में भागीदार बन सकें।
पर सबसे ज़्यादा ज़रूरत है संवेदनशीलता की, टूरेट सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति के साथ सामान्य व्यवहार करने की। हमारी संवेदनशीलता उन्हें एक सामान्य जीवन जीने में मदद कर सकती है। यह बात सिर्फ टूरेट के मामले में नहीं बल्कि हर भिन्न–सक्षम व्यक्ति के मामले में लागू होती है। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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