मनुष्य प्रजाति के सटीक जन्मस्थान का दावा

क नए आनुवंशिक अध्ययन का दावा है कि आधुनिक मनुष्य (होमो सेपियन्स) की उत्पत्ति का विशिष्ट स्थान पता चल गया है। जीवाश्म और डीएनए अध्ययनों के आधार पर यह तो पहले ही पता चल चुका है कि आधुनिक मानव की उत्पत्ति अफ्रीका में लगभग ढाई से तीन लाख वर्ष पहले हुई थी। लेकिन होमो सेपियन्स के प्राचीन जीवाश्म पूरे अफ्रीका में पाए जाते हैं और अफ्रीकी जीवाश्मों में डीएनए बहुत कम मिला है। इसलिए वैज्ञानिक एक विशिष्ट जन्मस्थान का पता लगाने में असमर्थ रहे हैं।

इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 200 जीवित लोगों के रक्त के नमूने लिए जिनके डीएनए के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। इनमें खोइसन भाषा बोलने वाले नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के शिकारी और संग्रहकर्ता भी शामिल थे। शोधकर्ताओं ने उनके माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए (mtDNA) की तुलना डैटाबेस में उपलब्ध 1000 से अधिक अफ्रीकियों, खासकर दक्षिण अफ्रीकी लोगों, के माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए से की। गौरतलब है कि mtDNA एक ऐसा डीएनए है जो केवल माताओं से विरासत में मिलता है। इसके बाद शोधकर्ताओं ने सभी डीएनए नमूनों में आपस में सम्बंध देखने की कोशिश की। 

पूर्व में किए गए अध्ययनों के इस निष्कर्ष की पुष्टि इस अध्ययन से प्राप्त डैटा से हुई कि खोइसन भाषियों में पाया जाने वाला mtDNA क्रम – L0 – जीवित लोगों में सबसे पुराना mtDNA वंशानुक्रम है। नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार इस शोध से L0 की उत्पत्ति का समय भी निर्धारित हो जाता है – आज से लगभग 2 लाख वर्ष पूर्व। चूंकि यह क्रम आज केवल दक्षिण अफ्रीका के लोगों में पाया जाता है तो इसका मतलब है कि L0 क्रम वाले लोग दक्षिण अफ्रीका में रहा करते थे और वही समस्त जीवित मनुष्यों के पूर्वज हैं। सिडनी स्थित गार्वन मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट की वेनेसा हेस और उनके साथियों का मानना है कि विशिष्ट रूप से यह स्थान आज के उत्तरी बोत्सवाना का कालाहारी क्षेत्र है। हालांकि इसका अधिकतर क्षेत्र रेगिस्तान में बदल चुका है लेकिन जलवायु आंकड़ों के अनुसार, डेढ़-दो लाख वर्ष पूर्व यह काफी हरा-भरा था जिसके नज़दीक अफ्रीका की सबसे बड़ी झील स्थित थी। टीम का मानना है कि L0 mtDNA वाले लोग लगभग 1.3 से 1.1 लाख साल पूर्व कालाहारी क्षेत्र में रहते थे।

बहरहाल, कई विशेषज्ञ दक्षिण अफ्रीका को मानव विकास का महत्वपूर्ण क्षेत्र तो मानते हैं लेकिन इस अध्ययन को इतना व्यापक नहीं मानते हैं कि जीवित लोगों के डीएनए से मानव प्रजाति के जन्मस्थान का सटीकता से पता लगाया जा सके। इन विशेषज्ञों का मानना है कि mtDNA के अलावा यदि शोधकर्ता पिता से प्राप्त वाय गुणसूत्र के विकास या माता-पिता से प्राप्त जीन का पता लगाते तो उन्हें अलग जवाब मिल सकते थे। हेस का मत है कि mtDNA भ्रूण के विकास के दौरान अन्य डीएनए की तरह नहीं बदलता है। इसलिए इसका उपयोग महिला पूर्वजों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है।

कुछ आलोचकों का मानना है कि खोइसन बोलने वाली L0 mtDNA वाली महिला पूर्वज 2 लाख वर्ष पूर्व दक्षिण अफ्रीका की एक बड़ी आबादी का हिस्सा थीं जिनके वंशज दक्षिण अफ्रीका के बाहर फैल गए। लंदन स्थित फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट के आनुवंशिकीविद पोंटस स्कोग्लुंड का मानना है कि आबादियों में इतना अधिक मेलजोल होता है कि जीवित मनुष्यों के डीएनए से 70 हज़ार से 2 लाख वर्ष पहले की जनसंख्या के बारे में पता कर पानी काफी हद तक सीमित हो जाता है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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