बर्फ के पिघलने से सरकते महाद्वीप

हालिया अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि बर्फ पिघलकर बह जाने से जैसे-जैसे महाद्वीपों पर जमी हुई बर्फ का भार कम होता है, ज़मीन विकृत होती है – न केवल उस स्थान पर जहां की बर्फ पिघली है बल्कि इसका असर दूर-दराज़ हिस्सों तक पड़ता है; असर बर्फ पिघलने के स्थान से 1000 किलोमीटर दूर तक देखा गया है।

बर्फ पिघलने से पृथ्वी के महाद्वीपों पर भार में अत्यधिक कमी आती है, और इस तरह बर्फ के भार से मुक्त हुई ज़मीन हल्की होकर ऊपर उठती है। ज़मीन में होने वाले इस ऊध्र्वाधर बदलाव पर तो काफी अध्ययन हुए हैं, लेकिन हारवर्ड विश्वविद्यालय की सोफी कूल्सन और उनके साथी जानना चाहते थे कि क्या ज़मीन अपने स्थान से खिसकती भी है?

यह जानने के लिए उन्होंने ग्रीनलैंड, अंटार्कटिका, पर्वतीय ग्लेशियरों और आइस केप्स (बर्फ की टोपियों) से पिघलने वाली बर्फ का उपग्रह डैटा एकत्रित किया। फिर इस डैटा को एक ऐसे मॉडल में जोड़ा जो बताता है कि पृथ्वी की भूपर्पटी पर पड़ने वाले भार में बदलाव होने पर वह किस तरह प्रतिक्रिया देती है या खिसकती है।

उन्होंने पाया कि 2003 से 2018 के बीच ग्रीनलैंड और आर्कटिक ग्लेशियरों की बर्फ के पिघलने से ज़मीन उत्तरी गोलार्ध की तरफ काफी खिसक गई है। और कनाडा तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकांश हिस्सों में ज़मीन प्रति वर्ष 0.3 मिलीमीटर तक खिसक रही है, कुछ क्षेत्र जो बर्फ पिघलने वाले स्थान से काफी दूर हैं वहां पर भी ज़मीन के खिसकने की गति ऊपर उठने की गति से अधिक है।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://media.nature.com/w1248/magazine-assets/d41586-021-02285-0/d41586-021-02285-0_19585022.jpg

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