दीर्घ कोविड: बड़े पैमाने के अध्ययन की ज़रूरत

ई लोगों में कोविड-19 से उबरने के बाद भी कई हफ्तों या महीनों तक थकान, याददाश्त की समस्या और सिरदर्द जैसे लक्षण बने रहते हैं। ऐसा क्यों होता और इसका उपचार क्या है यह पूरी तरह पता करने के लिए बड़े पैमाने पर अध्ययन की ज़रूरत है। और हाल ही में यूएस के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) ने ऐसे ही एक अध्ययन के लिए लगभग 47 करोड़ डॉलर के अनुदान की घोषणा की है। इस अध्ययन में कोविड-19 के संक्रमण उपरांत प्रभावों – जिसे दीर्घ कोविड कहते हैं – के कारण पता लगाने के अलावा उपचार और रोकथाम के उपाय पता  लगाए जाएंगे। यह अध्ययन सार्स-कोव-2 के संक्रमण से नए पीड़ित और पूर्व में इसका संक्रमण झेल चुके 40,000 वयस्कों और बच्चों पर किया जाएगा।

दीर्घ कोविड को सार्स-कोव-2 के विलंबित लक्षण भी कहते हैं। इसमें दर्द, थकान, याद रखने में परेशानी, नींद की समस्या, सिरदर्द, सांस लेने में तकलीफ, बुखार, पुरानी खांसी, अवसाद और दुÏश्चता जैसे लक्षण हो सकते हैं जो प्रारंभिक संक्रमण के चार सप्ताह से अधिक समय तक बने रहते हैं। कभी-कभी ये लक्षण इतने गंभीर होते हैं कि व्यक्ति काम नहीं कर पाता, उसे रोज़मर्रा के काम करने में भी मुश्किल होती है।

यूएस रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों (सीडीसी) का अनुमान है कि कोविड-19 के 10 से 30 प्रतिशत रोगियों में दीर्घ कोविड विकसित होता है। यह संभवत: वायरस के शरीर में छिप कर बैठे भंडार के कारण, अनियंत्रित प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण, या संक्रमण से उपजी किसी चयापचय समस्या के कारण होता है। लेकिन वास्तव में यह होता क्यों है, इसका सटीक और स्पष्ट कारण अब तक पता नहीं है।

एनआईएच ने फरवरी में दीर्घ कोविड अनुसंधान कार्यक्रम की अपनी प्रारंभिक योजना की रूपरेखा तैयार की थी। अब इसे रिसर्चिंग कोविड टू एनहान्स रिकवरी (RECOVER) इनिशिएटिव का रूप दिया गया है जिसके लिए न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय को 47 करोड़ का अनुदान मिला है। विश्वविद्यालय 35 संस्थानों के 100 से अधिक शोधकर्ताओं को शामिल करेगा जो एक साझे प्रोटोकॉल के तहत संक्रमितों को अध्ययन में शामिल करेंगे।

अक्टूबर से शुरू होने वाले इस कार्यक्रम का लक्ष्य 12 महीने में सभी 50 राज्यों की विविध आबादी से 30 से 40 हज़ार प्रतिभागियों को शामिल करना है। इसमें कुछ लोग जो दीर्घ कोविड से गुज़र रहे हैं, उन पर अध्ययन किया जाएगा लेकिन इसमें शामिल अधिकांश लोग कोविड-19 संक्रमित होंगे यानी वे लोग होंगे जो हाल ही में कोविड-19 से बीमार हुए हैं। अध्ययन में अस्पताल में भर्ती मरीजों के अलावा मामूली कोविड-19 से पीड़ित लोग भी शामिल होंगे – क्योंकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या शुरुआत में अधिक गंभीर संक्रमण दीर्घ कोविड की ओर ले जाता है?

इलेक्ट्रॉनिक मेडिकल रिकॉर्ड की मदद से और प्रतिभागियों को पहनने योग्य उपकरण देकर उनकी हृदय गति, नींद वगैरह की निगरानी की जाएगी। इस तरह यह अध्ययन उन लोगों के स्वास्थ्य की तुलना करेगा जो जल्दी ही ठीक हो जाते हैं और जिनके लक्षण लंबे समय तक बने रहते हैं। इसके आधार पर दीर्घ कोविड का जोखिम पैदा करने वाले कारकों और जैविक संकेतों का पता लगाया जाएगा। शोधकर्ता यह भी पता लगाएंगे कि क्या कोविड-19 का टीका लेने से दीर्घ कोविड के लक्षण कम होते हैं?

अध्ययन में लगभग आधे प्रतिभागी बच्चे होंगे और नवजात शिशु भी होंगे। भले ही आम तौर पर बच्चों में कोविड-19 के हल्के या कोई भी लक्षण नहीं होते हैं लेकिन यह चिंता उभरी है कि क्या उनमें विलंबित लक्षण पैदा होंगे। एक कारण यह भी है कि इस समय जितने बच्चे पीड़ित हैं, पूरी महामारी के दौरान इतने नहीं थे।

हालांकि यह अध्ययन दीर्घ कोविड के लिए नए उपचारों का परीक्षण नहीं करेगा। लेकिन शोधकर्ता उन प्रोटीन या आणविक प्रक्रियाओं की पहचान करेंगे जो दीर्घ कोविड में भूमिका निभाते हैं और मौजूदा औषधियों द्वारा इन्हें अवरुद्ध करने की संभावना जांचेंगे।

हालांकि इस अध्ययन के तरीके से इस क्षेत्र की एक प्रमुख कार्यकर्ता निराश हैं क्योंकि यह प्रयास बड़े पैमाने पर उन लोगों को अध्ययन में शामिल करेगा जिनमें अब तक दीर्घ कोविड विकसित नहीं हुआ है चूंकि वे हाल ही में संक्रमित हुए हैं। इनमें से बड़ी संख्या में लोग टीके ले चुके हैं। दरअसल इसमें उन लाखों लोगों को शामिल किया जाना चाहिए जो वर्तमान में इससे पीड़ित हैं। सर्वाइवर कोर की संस्थापक डायना बेरेंट का कहना है कि एनआईएच का यह अध्ययन छलावा है। इससे हम किसी नतीजे तक नहीं पहुंचेंगे। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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