एक महिला की कोशिकाओं पर बरसों से शोध – ऋषि राज राय

जकल ज़्यादातर दवाइयां-टीके बनाने, एचआईवी के परीक्षण, कोशिकाओं में संपन्न क्रियाओं व उनसे जुड़े सिद्धांत एवं कई अन्य बीमारियों को समझने के लिए वैज्ञानिक प्रयोगशाला में मानव कोशिकाओं का संवर्धन करते हैं। वैज्ञानिकों को कैंसर जैसी जटिल बीमारी को समझने तथा शोध करने के लिए ऐसी कोशिकाओं की ज़रूरत पड़ती है, जो लगातार समरूपता के साथ विभाजित होती रहें ताकि कृत्रिम परिस्थिति में उन कोशिकाओं की मदद से बीमारियों की उत्पत्ति, बीमारियों की क्रियाविधि और इलाज के विभिन्न तरीके खोजे जा सकें।

वैज्ञानिकों को समरूपी कोशिकाओं की ज़रूरत इसलिए भी पड़ती है क्योंकि उन्हें एक तरह के प्रयोग बार-बार दोहराने पड़ते हैं और अपने नतीजों की तुलना दूसरे वैज्ञानिकों के अवलोकनों के साथ करनी पड़ती है। परंतु 1951 तक वैज्ञानिकों के पास ऐसा कोई कोशिका-वंश नहीं था जो वर्षों तक पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक जैसी समरूप कोशिकाओं को जन्म दे सके। जो कोशिका-वंश उपलब्ध भी थे या जिन्हें बनाने की कोशिश की गई थी उनकी कोशिकाएं ज़्यादा से ज़्यादा एक-दो दिन में मर जाती थीं और उनका अध्ययन करना मुश्किल होता था।

हेनरीटा लैक्स

फिर संयुक्त राज्य अमरीका के जॉन हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक जॉर्ज गे की प्रयोगशाला में अजीबो-गरीब दिखने वाले ट्यूमर का एक नमूना आया। यह ट्यूमर कुछ हल्के बैंगनी रंग का, जेली जैसा चमकदार था। यह नमूना इसलिए भी कुछ खास था क्योंकि इसकी कुछ कोशिकाएं लगातार विभाजित होते हुए समरूपी कोशिकाओं को जन्म दे रहीं थीं। उन्होंने देखा कि जब कोई पुरानी कोशिका मरती है तो उसके जैसी ही कोशिका की प्रतियां उसकी जगह ले लेती हैं। इससे हुआ यह कि उसी कोशिका की संतानें आज तक मौजूद हैं और उनकी मदद से कई शोध कार्य भी हो रहे हैं।

डॉ. गे की एक प्रयोगशाला सहायक ने इस अमर कोशिका का नाम ‘हेला’ (HeLa) रखा। हेला नाम हेनरीटा लैक्स नामक कैंसर पीड़ित महिला के नाम पर रखा गया था जिनके ट्यूमर से डॉ. गे ने इस कोशिका-वंश की खोज की थी। हेनरीटा लैक्स का जन्म संयुक्त राज्य के वर्जीनिया में हुआ था और वे तम्बाकू के खेत में काम किया करती थीं। हुआ यह कि लैक्स जिस चिकित्सक के यहां इलाज करवा रही थीं, वे डॉ. गे की प्रयोगशाला के लिए कैंसर के ऊतकों के नमूने इकट्ठा कर रहे थे। बरसों से डॉ. गे और उनकी नर्स पत्नी मार्गरेट मानव कोशिकाओं को कृत्रिम रूप से प्रयोगशाला में पनपाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन बाकी वैज्ञानिकों की तरह इनके द्वारा संवर्धित कोशिकाएं कुछ पीढ़ियों तक विभाजित होने के बाद मर जाती थीं। लैक्स की मौत गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर से हुई थी और उनकी मौत के कुछ ही महीनों बाद डॉ. गे की प्रयोगशाला में उनके शरीर के ट्यूमर कोशिकाओं की मदद से इस अमर कोशिका-वंश को खोजा गया।

अब सवाल यह उठता है कि हेनरीटा लैक्स की ट्यूमर कोशिकाओं में ऐसा क्या खास है जिससे वे मरती नहीं हैं और विभाजित होते हुए लगातार समरूपी कोशिकाओं को जन्म देती रहती हैं? सच कहें तो इसका उत्तर आज भी पूरी तरह पता नहीं है।

होता यह है कि सामान्य कोशिकाएं औसतन पचास बार विभाजन करने के बाद एपोप्टोसिस नामक प्रक्रिया से खुद-ब-खुद खत्म हो जाती हैं। इसी कारण ज़्यादातर कोशिका-वंश भी एक समय के बाद खत्म हो जाते हैं। लेकिन हेला कोशिकाओं के साथ ऐसा नहीं होता, क्योंकि हेला कोशिकाओं में टेलोमरेज़ नामक एंज़ाइम अत्यधिक सक्रिय होता है। इससे कोशिकाएं एपोप्टोसिस की प्रक्रिया से न गुज़रकर लगातार विभाजित होती रहती हैं।

विभाजन से हाल ही में बनी हेला कोशिकाओं का इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से प्राप्त चित्र

डॉ. गे ने अमर कोशिका-वंश ‘हेला’ के कई नमूने दुनिया भर की प्रयोगशालाओं और वैज्ञानिकों के पास भेजे। जल्दी ही दुनिया में असंख्य हेला कोशिकाएं हर हफ्ते बनने और इस्तेमाल होने लगीं।

1950 के दशक में पोलियो की महामारी बुरी तरह फैली हुई थी। जोनास साल्क ने इन्हीं हेला कोशिकाओं का इस्तेमाल कर पोलियो के टीके का परीक्षण किया था। हेला कोशिकाओं को कई तरह की बीमारियों, जैसे चेचक, एचआईवी और इबोला को समझने और उन पर परीक्षण करने के लिए इस्तेमाल में लिया गया है।

ऐसा माना जाता है कि वाल्टर फ्लेमिंग ने 1882 में गुणसूत्रों की खोज की, पर लगभग 70 वर्ष बाद इन्हीं हेला कोशिकाओं की मदद से तीज़ो और लेवान ने उन रासायनिक रंजकों को खोजा जिनसे रंजित होकर गुणसूत्र दिखने लगते हैं और फिर उन्होंने मानव कोशिकाओं में गुणसूत्रों की सही संख्या की गिनती की। हेला कोशिकाएं पहली कोशिकाएं थीं जिन्हें क्लोन किया गया। इन कोशिकाओं को अंतरिक्ष में भी ले जाया गया है। टेलोमरेज़ जैसे एंज़ाइम जिसके कारण कैंसर कोशिकाएं एपोप्टोसिस से बचकर लगातार विभाजित होती रहती हैं, उसकी खोज भी हेला कोशिकाओं की मदद से ही की गई।

एक और गजब की बात है कि जिस गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर से हेनरीटा लैक्स की मौत हुई थी, उसके कारक ह्यूमन पैपिलोमा वायरस का भी पता हेला कोशिकाओं की मदद से चला था और आज तो इस वायरस से बचने के लिए टीका भी उपलब्ध है।

हेला कोशिकाओं के कारण असंख्य नई खोजें हुई हैं। वैज्ञानिकों ने हेनरीटा लैक्स की कोशिकाओं की मदद से कई शोध किए, इलाज ढूंढे, आविष्कार किए। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि इसकी जानकारी उनके परिवार को नहीं थी। दशकों बाद ही उनके परिवार को पता चला कि लैक्स की कोशिकाओं ने मानव इतिहास पर इतना बड़ा असर डाला है। यह उपेक्षा हेला कोशिकाओं के साथ काम करने वाले वैज्ञानिकों के ऊपर नैतिक प्रश्न भी उठाती है।

खैर कुछ भी हो, हेनरीटा लैक्स की कोशिकाओं के कारण करोड़ों लोगों के जीवन पर बड़ा ही सकारात्मक प्रभाव पड़ा, कई जानें बचीं और आगे भी बचती रहेंगी और इसके लिए पूरी मानवता हेनरीटा लैक्स और डॉ. जॉर्ज गे की कृतज्ञ रहेगी। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://upload.wikimedia.org/wikipedia/en/d/d7/Henrietta_Lacks_%281920-1951%29.jpg
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