मध्यकालीन प्रसव-पट्टे के उपयोग के प्रमाण

ध्ययुग में प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा की मृत्यु होना काफी आम बात थी। इस समय के ग्रंथों में सुरक्षित गर्भावस्था और प्रसव के लिए अभिमंत्रित कमरबंद का उल्लेख काफी मिलता है। लेकिन वास्तव में ऐसी बातों पर अमल किया जाता था या नहीं यह जानकारी नहीं थी। हाल ही में शोधकर्ताओं ने इंग्लैंड में मिले 15वीं शताब्दी के एक कमरबंद का विश्लेषण करके इस बात की पुष्टि की है कि मध्य काल में महिलाएं गर्भावस्था में अपनी और अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए इस तरह के कमरबंद सचमुच पहना करती थीं। और तो और, वे प्रसव के दौरान भी इसे बांधे रखती थीं।

प्राप्त कमरबंद (जिसे नाम दिया गया है पांडुलिपि-632) भेड़ की खाल से बना लगभग 332 सेंटीमीटर लंबा और 10 सेंटीमीटर चौड़ा चर्मपत्र था। इस पर धार्मिक प्रतीक और मंत्र अंकित थे। इसकी लंबाई-चौड़ाई देखकर लगता है कि इसे शरीर पर लपेटा जाता होगा। प्रसव से सम्बंधित संतों और पैगंबरों के नामों के अलावा इस कमरबंद पर अंकित था: ‘यदि कोई महिला प्रसव या गर्भवास्था के दौरान कमरबंद पहनेगी तो यह उसके गर्भ की रक्षा करेगा और बिना किसी परेशानी के सुरक्षित प्रसव कराएगा।’

यह जानने के लिए कि क्या चिकित्सा ग्रंथों में उल्लेखित प्रसव प्रथाएं वाकई में अमल में लाई जाती थीं, युनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज की सारा फिडीमेंट ने कमरबंद पर पड़े धब्बों का विश्लेषण किया। उन्होंने इरेज़र की मदद से नाज़ुक कमरबंद पर संरक्षित धब्बों को इस तरह हल्के-हल्के रगड़ कर छुड़ाया कि कमरबंद को कोई क्षति न पहुंचे। फिर इन नमूनों में विभिन्न तरह के प्रोटीन की पहचान की। प्राप्त परिणामों की तुलना उन्होंने एक नए चर्मपत्र और 18वीं शताब्दी के चर्मपत्र के नमूनों के साथ की। रॉयल सोसायटी ओपन साइंस में शोधकर्ता बताते हैं कमरबंद पर शहद, दूध, अंडे, अनाज, फलियां और विभिन्न मानव प्रोटीन के निशान मिले। और इनमें से कई मानव प्रोटीन ग्रीवा-योनि द्रव के प्रोटीन थे, जिससे लगता है कि महिलाएं प्रसव के दौरान इसे पहने रखती थीं।

इसके अलावा ग्रंथों में गर्भवती महिला के लिए जिस तरह के खान-पान का उल्लेख मिलता है, कमरबंद पर उसी तरह के खाद्यों के प्रोटीन की पहचान हुई है। ये इस बात का संकेत देते हैं कि ग्रंथों में उल्लेखित प्रथाओं को गंभीरता से अमल में लाया जाता था।

इस संदर्भ में अन्य शोधकर्ता बताते हैं कि महिलाओं के प्रसव के प्रति सजगता यूं ही नहीं बढ़ी होगी। दरअसल 1300 के दशक में युरोप में प्लेग फैलने के बाद वहां की आबादी में कमी आई थी, इसलिए सुरक्षित प्रसव के तरीके पहचानना और उन्हें अमल में लाना महत्पूर्ण रहा होगा।

वैसे यह अध्ययन मध्यकालीन प्रसव प्रथाओं के बारे में कोई नई जानकारी नहीं देता लेकिन यह बताता है कि प्राचीन पांडुलिपियों का वैज्ञानिक विश्लेषण करके उनके उपयोग के बारे में पुष्टि की जा सकती है। इंग्लैंड और फ्रांस से इस तरह के लगभग एक दर्जन चर्मपत्र मिले हैं, जिसमें से कुछ प्रसव के दौरान उपयोग किए जाते होंगे जबकि कुछ का उपयोग सर्वार्थ सिद्धि तावीज़ या रक्षा कवच की तरह किया जाता होगा। जैसे युद्ध में जाने वाले पुरुषों की रक्षा के लिए। इन चर्मपत्रों पर मौजूद प्रोटीन या चिकित्सा पांडुलिपियों पर पड़े धब्बों के प्रोटीन की पहचान करके यह भी पता किया जा सकता है कि क्या ऑपरेशन टेबल पर शल्य क्रिया के दौरान उन्हें खोलकर रखा जाता था। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://i.dailymail.co.uk/1s/2021/03/10/08/40284796-0-image-a-3_1615364946626.jpg

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