डॉल्फिन साथियों से सीखती हैं शिकार का नया तरीका

गभग दस साल पहले पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की शार्क बे में वैज्ञानिकों का ध्यान बॉटलनोज़ डॉल्फिन (Tursiopsaduncus) के विचित्र व्यवहार की ओर गया था। उन्होंने देखा कि ये डॉल्फिन किसी मछली को विशाल घोंघों की खाली खोल के अंदर ले जाती हैं। जब मछली खोल के अंदर चली जाती है तो डॉल्फिन खोल को समुद्र की सतह पर लाती हैं और उसे ज़ोर-ज़ोर से हिलाती हैं जिससे मछली सीधे उनके खुले हुए मुंह में गिरती हैं। शिकार के इस तरीके, जिसे शेलिंग कहते हैं, से उन्हें निश्चित तौर पर भोजन मिलता है। और अब करंट बायोलॉजी में शोधकर्ता बताते हैं कि डॉल्फिन शिकार के लिए घोंघे की खोल का इस्तेमाल करने की तकनीक अपने दोस्तों से सीखती हैं।

बॉटलनोज़ डॉल्फिन द्वारा किसी खोल का उपयोग करना औज़ार के उपयोग का एक उदाहरण है। औज़ार की मदद से शिकार करने का उनका यह दूसरा ज्ञात उदाहरण है। 1997 में देखा गया था कि बॉटलनोज़ डॉल्फिन समुद्र के पेंदे में मछली पकड़ने के लिए समुद्री स्पंज को अपनी चोंच के ऊपर सुरक्षात्मक दस्ताने जैसे पहनती हैं।

वैसे तो वैज्ञानिकों ने शेलिंग का अवलोकन 10 साल पहले किया था लेकिन इस व्यवहार में वृद्धि 2011 में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में आई एक असामान्य समुद्री ग्रीष्म लहर के बाद देखी गई थी। बढ़े हुए तापमान के कारण समुद्री घोंघों सहित कई जीवों की मृत्यु हो गई। संभवत: डॉल्फिन ने घोंघों की इस मृत्यु का लाभ उठाया। इस घटना के अगले साल शेलिंग में ज़बर्दस्त वृद्धि देखी गई थी। इसने मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल बिहेवियर की सोन्जा वाइल्ड और उनके साथियों को यह पता लगाने को प्रेरित किया कि युवा डॉल्फिन शेलिंग सीखती कैसे हैं।

साल 2007 से 2018 के बीच हुए खाड़ी सर्वेक्षण के दौरान शोधकर्ताओं का लगभग 5300 डॉल्फिन के समूह से सामना हुआ और जिसमें उन्होंने 1000 से अधिक डॉल्फिन की पहचान की। 19 ऐसी डॉल्फिन भी दिखीं जो तीन आनुवंशिक वंशावली की थी और 42 बार शेलिंग करते हुए पाई गर्इं थी।

यह जानने के लिए कि डॉल्फिन यह तकनीक कैसे सीखती हैं शोधकर्ताओं ने सामाजिक नेटवर्क विश्लेषण किया। जिसमें उन्होंने आनुवंशिक सम्बंधों, पर्यावरणीय कारकों और डॉल्फिन किन जानवरों के साथ समय बिताना पसंद करती है का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि शेलिंग मां से सीखने की बजाए अपने मित्रों या साथियों से सीखा जाता है। वाइल्ड बताती हैं कि शेलिंग वयस्क डॉल्फिन करती हैं। जितना अधिक समय युवा डॉल्फिन किसी निपुण शेलर के साथ बिताती हैं उसके तकनीक सीखने की संभावना उतनी ही अधिक होती है।

फिर भी, चूंकि शिशु डॉल्फिन अपनी माताओं के साथ लगभग 30,000 घंटों से अधिक समय बिताते हैं, तो यह भी एक संभावना हो सकती है कि कुछ डॉल्फिन ने यह तकनीक अपनी मां से सीखी हो। ऐसा माना जाता है कि शेलिंग जैसे कौशल किसी असम्बंधित सदस्य से सीखने के लिए अधिक संज्ञानात्मक क्षमता की ज़रूरत होती हैं क्योंकि सीखने वाले और सिखाने वाले, दोनों को ‘सामाजिक रूप से सहिष्णु’ होना ज़रूरी है – विशेषकर शिकार के समय।

ये नतीजे बदलते पर्यावरण का सामना कर रहीं डॉल्फिन के अस्तित्व के लिए आशाजनक हो सकते हैं। जैसे पक्षियों की कुछ नवाचारी प्रजातियां नए आवास तलाशने में बेहतर होती हैं, उसी तरह हो सकता है कि शिकार के इस तरीके को अपना कर डॉल्फिन की संख्या और विविधता भी बढ़ जाए। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://www.sciencemag.org/sites/default/files/styles/article_main_image_-1280w__no_aspect/public/Snapping_shrimp_1280x720.jpg?itok=xvBNujr1

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