महामारी का अंत कैसे होगा

कोरोनावायरस वुहान के नज़दीक पाए जाने वाले चमगादड़ की एक प्रजाति से किसी तरह एक अन्य मध्यवर्ती प्रजाति से मनुष्यों में प्रवेश कर गया। लेकिन अभी तक किसी को नहीं पता कि यह महामारी खत्म कैसे होगी। अलबत्ता, पूर्व की महामारियों से भविष्य के संकेत मिलते हैं। युनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की महामारीविद और जीवविज्ञानी सारा कोबे और अन्य विशेषज्ञों के अनुसार पूर्व के अनुभवों से पता चलता है कि आने वाला समय इस बात पर निर्भर करता है कि रोगाणु का विकास किस तरह होता है और उस पर मनुष्यों की जैविक और सामाजिक दोनों तरह की प्रतिक्रिया क्या रहती है।    

वास्तव में वायरस निरंतर उत्परिवर्तित होते रहते हैं। किसी भी महामारी को शुरू करने वाले वायरस में इतनी नवीनता होती है कि मानव प्रतिरक्षा प्रणाली उन्हें जल्दी पहचान नहीं पाती। ऐसे में बहुत ही कम समय में बड़ी संख्या में लोग बीमार हो जाते हैं। भीड़भाड़ और दवा की अनुपलब्धता जैसे कारणों के चलते इस संख्या में काफी तेज़ी से वृद्धि होती है। अधिकतर मामलों में तो प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा विकसित एंटीबॉडीज़ लंबे समय तक बनी रहती हैं, प्रतिरक्षा प्रदान करती हैं और व्यक्ति से व्यक्ति में संक्रमण को रोक देती हैं। लेकिन इस तरह के परिवर्तनों में कई साल लग जाते हैं, तब तक वायरस तबाही मचाता रहता है। पूर्व की महामारियों के कुछ उदाहरण देखते हैं।

रोग के साथ जीवन

आधुनिक इतिहास का एक उदाहरण 1918-1919 का एच1एन1 इन्फ्लुएंज़ा प्रकोप है। उस समय डॉक्टरों और प्रशासकों के पास आज के समान साधन उपलब्ध नहीं थे और स्कूल बंद करने जैसे नियंत्रण उपायों की प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती थी कि उन्हें कितनी जल्दी लागू किया जाता है। लगभग 2 वर्ष और महामारी की 3 लहरों ने 50 करोड़ लोगों को संक्रमित किया था और लगभग 5 से 10 करोड़ लोग मारे गए थे। यह तब समाप्त हुआ था जब संक्रमण से उबर गए लोगों में प्राकृतिक रूप से प्रतिरक्षा पैदा हो गई।

इसके बाद भी एच1एन1 स्ट्रेन कुछ हल्के स्तर पर 40 वर्षों तक मौसमी वायरस के रूप में मौजूद रहा। और 1957 में एच2एन2 स्ट्रेन की एक महामारी ने 1918 के अधिकांश स्ट्रेन को खत्म कर दिया। एक वायरस ने दूसरे को बाहर कर दिया। वैज्ञानिक नहीं जानते कि ऐसा कैसे हुआ। प्रकृति कर सकती है, हम नहीं।

कंटेनमेंट

2003 की सार्स महामारी का कारण कोरोनावायरस SARS-CoV था। यह वर्तमान महामारी के वायरस (SARS-CoV-2) से काफी निकटता से सम्बंधित था। उस समय की आक्रामक रणनीतियों, जैसे रोगियों को आइसोलेट करने, उनसे संपर्क में आए लोगों को क्वारेंटाइन करने और सामाजिक नियंत्रण से इस रोग को हांगकांग और टोरंटो के कुछ इलाकों तक सीमित कर दिया गया था।

गौरतलब है कि यह कंटेनमेंट इसलिए सफल रहा था क्योंकि इस वायरस के लक्षण काफी जल्दी नज़र आते थे और यह वायरस केवल अधिक बीमार व्यक्ति से ही किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमित कर सकता था। अधिकांश मरीज़ लक्षण प्रकट होने के एक सप्ताह बाद ही संक्रामक होते थे। यानी यदि लक्षण प्रकट होने के बाद उस व्यक्ति को अलग-थलग कर दिया जाता तो संक्रमण आगे नहीं फैलता था। कंटेनमेंट का तरीका इतना कामयाब रहा कि इसके मात्र 8098 मामले सामने आए और सिर्फ 774 लोगों की ही मौत हुई। 2004 से लेकर आज तक इसका कोई और मामला सामने नहीं आया है।     

टीका

विशेषज्ञों के अनुसार 2009 में स्वाइन फ्लू का वायरस 1918 के एच1एन1 वायरस के समान ही था। हम काफी भाग्यशाली रहे कि इसकी संक्रामक और रोगकारी क्षमता बहुत कम थी और छह माह के अंदर ही इसका टीका विकसित कर लिया गया था।

गौरतलब है कि खसरा या चेचक के टीके के विपरीत, फ्लू के टीके कुछ वर्षों तक ही सुरक्षा प्रदान करते हैं। इन्फ्लुएंज़ा वायरस जल्दी-जल्दी उत्परिवर्तित होते रहते हैं, और इसलिए इनके टीकों को भी हर साल अद्यतन करने और नियमित रूप से लगाने की ज़रूरत होती है।

वैसे महामारी के दौरान अल्पकालिक टीके भी काफी महत्वपूर्ण होते हैं। 2009 के वायरस के खिलाफ विकसित टीके ने अगले जाड़ों में इसके पुन: प्रकोप को काफी कमज़ोर कर दिया था। टीके की बदौलत ही 2009 का वायरस ज़्यादा तेज़ी से 1918 के वायरस की नियति को प्राप्त हो गया। जल्दी ही इसे मौसमी फ्लू के रूप में जाना जाने लगा जिसके विरुद्ध अधिकतर लोग संरक्षित हैं – या तो फ्लू के टीके से या पिछले संक्रमण से उत्पन्न एंटीबॉडी द्वारा।  

वर्तमान महामारी

वर्तमान महामारी की समाप्ति को लेकर फिलहाल तो अटकलें ही हैं लेकिन अनुमान है कि इस बार पूर्व की महामारियों में उपयोग किए गए सभी तरीकों की भूमिका होगी – मोहलत प्राप्त करने के लिए सामाजिक-नियंत्रण, लक्षणों से राहत पाने के लिए नई एंटीवायरल दवाइयां और टीका।

सामाजिक दूरी जैसे नियंत्रण के उपाय कब तक जारी रखने होंगे यह तो लोगों पर निर्भर करता है कि वे कितनी सख्ती से इसका पालन करते हैं और सरकारों पर निर्भर करता है कि वे कितनी मुस्तैदी से प्रतिक्रिया देती हैं। कोबे का कहना है कि इस महामारी का नाटक 50 प्रतिशत तो सामाजिक व राजनैतिक है। शेष आधा विज्ञान का है।

इस महामारी के चलते पहली बार कई शोधकर्ता एक साथ मिलकर, कई मोर्चों पर इसका उपचार विकसित करने पर काम कर रहे हैं। यदि जल्दी ही कोई एंटीवायरल दवा विकसित हो जाती है तो गंभीर रूप से बीमार होने वाले लोगों या मृत्यु की संख्याओं को कम किया जा सकेगा।

स्वस्थ हो चुके रोगियों में SARS-CoV-2 को निष्क्रिय करने वाली एंटीबॉडीज़ की जांच तकनीक से भी काफी फायदा मिल सकता है। इससे महामारी खत्म तो नहीं होगी लेकिन गंभीर रूप से बीमार रोगियों के उपचार में एंटीबॉडी युक्त रक्त का उपयोग किया जा सकता है। ऐसी जांच के बाद वे लोग काम पर लौट सकेंगे जो इस वायरस को झेलकर प्रतिरक्षा विकसित कर पाए हैं।  

संक्रमण को रोकने के लिए टीके की आवश्यकता होगी जिसमें अभी भी लगभग 1 साल का समय लग सकता है। एक बात स्पष्ट है कि टीका बनाना संभव है। और फ्लू के वायरस की अपेक्षा SARS-CoV-2 का टीका बनाना आसान होगा क्योंकि यह कोरोनावायरस है और इनके पास मानुष्य की कोशिकाओं के साथ संपर्क करके अंदर घुसने के रास्ते बहुत कम होते हैं। वैसे यह खसरे के टीके की तरह दीर्घकालिक प्रतिरक्षा प्रदान तो नहीं करेगा लकिन फिलहाल तो कोई भी टीका मददगार होगा। 

जब तक दुनिया के हर स्वस्थ व्यक्ति को टीका नहीं लग जाता, कोविड-19 स्थानीय महामारी बना रहेगा। यह निरंतर प्रसारित होता रहेगा और मौसमी तौर पर लोगों को बीमार भी करता रहेगा, कभी-कभार गंभीर रूप से। अधिक समय तक बना रहा तो यह बच्चों को छुटपन में ही संक्रमित करने लगेगा। बचपन में बहुत गंभीर लक्षण प्रकट नहीं होते और ऐसा देखा जाता है कि बचपन में संक्रमित बच्चे वयस्क अवस्था में फिर से संक्रमित होने पर उतने गंभीर बीमार नहीं होते। अधिकांश लोग टीकाकरण और प्राकृतिक प्रतिरक्षा के मिले-जुले प्रभाव से सुरक्षित रहेंगे। लेकिन अन्य वायरसों की तरह SARS-CoV-2 भी लंबे समय तक हमारे बीच रहेगा। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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