पानी गर्म करने में खर्च ऊर्जा की अनदेखी – आदित्य चुनेकर, श्वेता कुलकर्णी

प्रयास (ऊर्जा समूह) ने उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के 3000घरों में बिजली के अंतिम उपयोग के पैटर्न को समझने के लिए फरवरी-मार्च 2019में एक सर्वेक्षण किया था। यहां उस सर्वेक्षण के आधार पर प्रकाश व्यवस्था के बदलते परिदृश्य की चर्चा की गई है। इस शृंखला में आगे बिजली के अन्य उपयोगों पर चर्चा की जाएगी।

भारत में वर्तमान ऊर्जा नीति में नहाने के लिए पानी गर्म करने में खर्च होने वाली ऊर्जा को अनदेखा किया गया है। ठोस र्इंधन के उपयोग को खत्म करने के उद्देश्य से किए जाने वाले हस्तक्षेपों का ध्यान मूलत: खाना पकाने पर केंद्रित रहा है। अतीत की नीतियों में सौर वॉटर हीटरों पर काफी ध्यान दिया गया था, लेकिन 2014 में सौर वॉटर हीटरों पर सब्सिडी देने वाले एक राष्ट्रीय कार्यक्रम को भी बंद कर दिया गया। दूसरी ओर, ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (बीईई) के पास स्टोरेज इलेक्ट्रिक वॉटर हीटर के लिए अनिवार्य मानक और लेबलिंग (एस-एंड-एल) कार्यक्रम ज़रूर है। इस आलेख में, हम सर्वेक्षित घरों में पानी गर्म करने के पैटर्न की चर्चा करेंगे और यह देखेंगे कि इनका नीतिगत हस्तक्षेपों के लिए क्या निहितार्थ हो सकता है।

आम तौर पर, महाराष्ट्र की तुलना में उत्तर प्रदेश में सर्दियां अधिक ठंडी होती हैं। लेकिन सर्वेक्षित परिवारों में उत्तर प्रदेश में 34 प्रतिशत जबकि महाराष्ट्र में 92 प्रतिशत घरों में नहाने के लिए गर्म पानी का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश में नहाने के लिए गर्म पानी का उपयोग औसतन साल में केवल 2 महीने किया जाता है जबकि महाराष्ट्र में ऐसा 6 महीने किया जाता है। उत्तर प्रदेश में नहाने के लिए गर्म पानी के कम उपयोग के कई कारक हो सकते हैं। संभवत: आमदनी एक कारण हो सकता है – जहां निम्न आय वाले 25 प्रतिशत घरों में नहाने के लिए गर्म पानी का उपयोग किया जाता है वहीं उच्च आय वाले घरों में यह आंकड़ा 50 प्रतिशत है। इसमें कुछ सामाजिक प्रथाओं का भी योगदान है। एक बात यह कही जाती है कि लोग सर्दियों में नहाने के लिए गुनगुने भूजल का उपयोग करते हैं। हालांकि, यह संभावना हो सकती है कि जैसे-जैसे आय में वृद्धि होगी और सामाजिक प्रथाओं में बदलाव आएगा, वैसे-वैसे पानी गर्म करने के लिए ऊर्जा के उपयोग में भी वृद्धि होगी। इसकी और जांच करने की आवश्यकता है।

जो परिवार नहाने के लिए पहले से ही गर्म पानी का उपयोग कर रहे हैं वे अलग-अलग र्इंधन का इस्तेमाल करते हैं। उत्तर प्रदेश के लगभग 35 प्रतिशत और महाराष्ट्र के 52 प्रतिशत सर्वेक्षित परिवारों में पानी गर्म करने के लिए ठोस र्इंधन का उपयोग किया जाता है। दिलचस्प बात तो यह है कि इनमें से उत्तर प्रदेश के लगभग 37 प्रतिशत और महाराष्ट्र के लगभग 91 प्रतिशत घरों में पानी गर्म करने के लिए तो ठोस र्इंधन का उपयोग किया जाता है लेकिन खाना बनाने के लिए एलपीजी का इस्तेमाल होता है। इससे लगता है कि पानी गर्म करने के लिए ठोस र्इंधन का उपयोग समाप्त करने के लिए सावधानीपूर्वक विकसित कार्यक्रमों की आवश्यकता है। आंगन में रखे ठोस र्इंधन बायलर या खुली हवा में चूल्हे का उपयोग महाराष्ट्र के घरों में काफी आम है। इससे अंदरूनी घरेलू प्रदूषण तो नहीं होगा लेकिन यह स्थानीय प्रदूषण में योगदान अवश्य दे सकता है।

पानी को गर्म करने के लिए एलपीजी दूसरे नंबर का मुख्य र्इंधन है, खास तौर पर अर्ध-शहरी क्षेत्रों में। उत्तर प्रदेश में लगभग 39 प्रतिशत और महाराष्ट्र में लगभग 33 प्रतिशत अर्ध-शहरी सर्वेक्षित परिवारों में पानी गर्म करने के लिए एलपीजी का उपयोग किया जाता है। जिन घरों में पानी गर्म करने के लिए एलपीजी का उपयोग किया जाता है वहां सिलेंडर की खपत अन्य परिवारों की तुलना में थोड़ी अधिक होती है। इसके लिए उत्तर प्रदेश में औसतन 2 सिलेंडर और महाराष्ट्र में 0.7 सिलेंडर अधिक उपयोग किए जाते हैं। उत्तर प्रदेश में लगभग 19 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 7 प्रतिशत परिवार एलपीजी इंस्टेंट वॉटर हीटर का उपयोग करते हैं। अन्य परिवार पानी गर्म करने के लिए एलपीजी स्टोव का उपयोग करते हैं जिसका उपयोग वे खाना पकाने के लिए भी करते हैं।

कुछ घरों में पानी गर्म करने के लिए बिजली का उपयोग भी किया जाता है – उत्तर प्रदेश में लगभग 19 प्रतिशत और महाराष्ट्र के 8 प्रतिशत घरों में पानी गर्म करने के लिए बिजली का उपयोग होता है। उत्तर प्रदेश के 92 प्रतिशत और महाराष्ट्र के 82 प्रतिशत ऐसे घरों में पानी गर्म करने के लिए इमर्शन रॉड का उपयोग किया जाता है। इसकी वजह से बिजली के झटके और आग जैसी दुर्घटनाओं का खतरा बना रहता है।

सौर वॉटर हीटर का उपयोग दोनों ही राज्यों में न के बराबर है। पानी गर्म करने के लिए एक ही घर में अलग-अलग र्इंधनों का उपयोग नहीं किया जाता जैसे खाना पकाने के लिए किया जाता है।

यदि पानी गर्म करके उपयोग किया जाता है तो कुल घरेलू ऊर्जा खपत में इसका काफी योगदान रहता है। ठोस र्इंधन के आम उपयोग के परिणामस्वरूप अंदरूनी और स्थानीय वायु प्रदूषण होता है जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। खाना पकाने के लिए ठोस र्इंधन के उपयोग को खत्म करने के लिए जिस ढंग के हस्तक्षेप किए गए हैं, वे शायद इस मामले में कारगर न रहें। बिजली, एलपीजी और सौर वॉटर हीटर जैसे विकल्पों को अपनाने का आग्रह करने से पहले उनका सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना होगा।

अगले आलेख में हम अपने सर्वेक्षण के नतीजों और प्रत्येक कार्य में कुल उर्जा खपत के योगदान का आकलन करके इस शृंखला का समापन करेंगे।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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