विज्ञान शिक्षण में भेदभाव

मैक्वारी युनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया की शोधकर्ता डॉ. कैरोल नेवाल के अनुसार शिक्षकों में विज्ञान शिक्षण को लेकर भेदभाव का रवैया देखा गया है। अवचेतन रूप से वे भौतिकी में लड़कों की तुलना में लड़कियों को शैक्षणिक रूप से कम सक्षम मानते हैं।

डॉ. नेवाल का यह अध्ययन उस सामाजिक रवैये को रेखांकित करता है जो लड़कियों को विज्ञान अध्ययन से दूर करता है। यह इस बात से साबित होता है कि भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के 117 वर्ष के इतिहास में अभी तक केवल 3 महिलाओं को ही यह पुरस्कार मिला है।

कंटेम्पररी एजुकेशनल साइकोलॉजी में प्रकाशित डॉ. नेवाल के शोध में बताया गया है कि एक प्रयोग के दौरान किस प्रकार से एक काल्पनिक आठ वर्षीय बच्चे के जेंडर के साथ हेरफेर की गई और इसने किस तरह बच्चे की क्षमता और विज्ञान के प्रति लगाव को लेकर वयस्कों के एहसास को प्रभावित किया।

डॉ. नेवाल ने अध्ययन में पाया कि व्यस्क दरअसल बच्चों में आठ साल की उम्र से ही भेदभाव करने लगते हैं और लड़कियों में भौतिकी विषय को लेकर उन्हें उम्मीद कम रहती है। एक प्रयोग में डॉ. नेवाल और उनके सहयोगियों ने 80 प्रशिक्षु शिक्षकों और मनोविज्ञान में स्नातकों से आठ साल के बच्चों के एक काल्पनिक प्रोफाइल के आधार पर उनकी शैक्षणिक क्षमता का मूल्यांकन करने को कहा। इसमें उन्होंने कई प्रोफाइल शामिल किए थे – ऐसी लड़कियां जो गुड़ियों से खेलती हैं, ऐसे लड़के जो क्रिकेट खेलते हैं और कुछ ऐसे बच्चे जिनका जेंडर प्रोफाइल में स्पष्ट नहीं होता था और तैराकी पसंद करते थे।

प्रतिभागियों द्वारा इन काल्पनिक बच्चों को स्काइप पर विज्ञान सिखाने के लिए भी कहा गया। जब उन्हें पता होता कि वे किसी लड़की को पढ़ा रहे हैं, तब वे कम वैज्ञानिक शब्दावली का उपयोग करते थे। लड़कियों को पढ़ाने के मामले में अधिकांश प्रतिभागियों का ऐसा मानना था कि भौतिकी में उनका प्रदर्शन अच्छा रहने या उन्हें भौतिकी में रुचि होने की संभावना कम है। यदि वह कोई रूढ़िगत लड़की होती, तो वे मान लेते थे उसकी किसी भी विज्ञान में रुचि रखने की संभावना है। यह मुमकिन है कि वे अपने पूर्वाग्रह से अनजान थे, लेकिन उन्हें यह जानकर आश्चर्य होता कि उन्होंने लड़कियों और लड़कों को अलग-अलग तरीके से पढ़ाया।

वर्तमान परिस्थिति भी इस अध्ययन की पुष्टि करती है। ऑस्ट्रेलियन इंस्टीट्यूट ऑफ फिज़िक्स (एआईपी) के आंकड़ों के अनुसार, हाई स्कूल के अंतिम वर्ष में सात प्रतिशत लड़कियां और 23.5 प्रतिशत लड़के भौतिकी पढ़ते हैं। विश्वविद्यालय में भी वर्ष 2002 में भौतिकी स्नातक कक्षाओं में लड़कियों की संख्या 27.6 प्रतिशत थी जो घटकर 21 प्रतिशत रह गई है। अमेरिकी और ब्रिटिश विश्वविद्यालयों में भी यही स्थिति है। स्कूलों और विश्वविद्यालयों में भौतिकी शिक्षकों और सार्वजनिक एवं निजी प्रयोगशालाओं में शोधकर्ताओं के रूप में भी महिलाओं की संख्या कम होती है। एआईपी के अनुसार आम तौर पर महिला भौतिकविदों की वरिष्ठता भी कम होती है और आय भी।

डॉ. नेवाल का कहना है कि लड़कियों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिग व गणित छात्रवृत्ति वगैरह में निवेश के साथ-साथ सांस्कृतिक बदलाव भी ज़रूरी होगा। साथ ही अभिभावकों को भी अपना रवैया बदलना होगा ताकि विज्ञान व गणित के प्रति एक सकारात्मक रुझान के अनुकरणीय उदाहरण सामने आएं। (स्रोत फीचर्स)
नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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