परमाणु विखंडन का एक दुर्लभ ढंग देखा गया

टली के एक पर्वत के अंदर बैठकर वैज्ञानिकों का एक दल डार्क मैटर की खोज में जुटा है। उन्हें अभी तक डार्क मैटर यानी अदृश्य पदार्थ के ‘दर्शन’ तो नहीं हुए हैं लेकिन एक दुर्लभ किस्म के परमाणु विखंडन की प्रक्रिया को देखने और अध्ययन करने का मौका ज़रूर मिल गया।

यह प्रयोग ज़ीनॉन सहयोग है। इसमें एक बड़-सी टंकी में 3200 किलोग्राम ज़ीनॉन गैस भरी है। ज़ीनॉन एक अक्रिय गैस है और विकिरण से सुरक्षित है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि यदि ब्राहृांड में कणों की कोई अत्यंत दुर्लभ अंतर्क्रिया हुई तो ज़ीनॉन की इस टंकी में उसे कैद करना और उसका अध्ययन करना सबसे बढ़िया ढंग से हो सकेगा।

अलबत्ता, ऐसी कोई अंतर्क्रिया तो देखी नहीं गई है जो अदृश्य पदार्थ का सुराग दे सके लेकिन ज़ीनॉन के परमाणु का विखंडन ज़रूर देख लिया गया है जो अपने-आप में एक दुर्लभ घटना है।  इस घटना की दुर्लभता को समझने के लिए यह आंकड़ा पर्याप्त होगा कि ज़ीनॉन-124 की अर्ध-आयु 1.8×1022 वर्ष है। यह ब्राहृांड की वर्तमान उम्र से लगभग 1 खरब गुना है। अर्ध-आयु का मतलब होता है कि किसी पदार्थ के जितने परमाणु हैं उनमें से आधे के विखंडन में लगने वाला समय।

ज़ीनॉन का परमाणु भार 124 है और इसके केंद्रक में 54 प्रोटॉन होते हैं। इसके परमाणु का विखंडन होता है तो एक अन्य तत्व टेलुरियम-124 बनता है। यह विखंडन सामान्य विखंडन नहीं है बल्कि थोड़ा असाधारण है। ज़ीनॉन-124 के विखंडन में होता यह है कि उसके केंद्रक के इर्द-गिर्द घूम रहे 54 इलेक्ट्रॉन में से 2 केंद्रक में प्रवेश कर जाते हैं। केंद्रक में पहुंचकर ये दोनों एक-एक प्रोटॉन से जुड़कर उन्हें न्यूट्रॉन में बदल देते हैं। इस प्रक्रिया में न्यूट्रिनो नामक कण मुक्त होते हैं। न्यूट्रिनो एक रहस्यमय कण है जिस पर कोई आवेश नहीं होता और जिसका द्रव्यमान भी नगण्य होता है। इसलिए यह कण अन्य कणों से कोई अंतर्क्रिया करे तो भी पता नहीं चलता।

बहरहाल, विखंडन की इस प्रक्रिया में ऊर्जा मुक्त होती है जो एक्स-रे के रूप में निकलती है। ज़ीनॉन सहयोग के दल ने इसी एक्स-रे के आधार पर पता लगाया है कि ज़ीनॉन की टंकी में यह दुर्लभ विखंडन हुआ है। इसकी मदद से उन्होंने इस क्रिया के समय का मापन भी किया है। इसके आधार पर वे ज़ीनॉन-124 की अर्ध-आयु निकालने में सफल रहे हैं। यह प्रयोग द्वारा निकाली गई सबसे लंबी अर्ध-आयु है। वैसे इससे अधिक अर्ध-आयु टेलुरियम-128 की है किंतु उसे प्रयोग द्वारा नहीं निकाला गया है बल्कि उसकी गणना ही की गई है। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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