खतरे में है ओरांगुटान की नई प्रजाति – डॉ. विपुल कीर्ति शर्मा

रांगुटान हमारे करीबी रिश्तेदार हैं क्योंकि इनका जीनोम और मानव जीनोम 96.4 प्रतिशत समान है। ये अपने खास लाल फर के लिए पहचाने जाते हैं तथा पेड़ों पर रहने वाले सबसे बड़े स्तनधारी हैं। ये लंबी तथा शक्तिशाली भुजाओं से एक से दूसरे पेड़ पर छलांग लगाते हैं और इस दौरान हाथ और पैरों से मज़बूत पकड़ बनाए रखते हैं।

ब्रुनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया तथा सिंगापुर में बोली जाने वाली मलय भाषा में ओरांगुटान का मतलब होता है जंगल का मानव। ये निचले भूभाग के जंगलों में अकेले रहना पसंद करते हैं। लीची, मैंगोस और अंजीर जैसे जंगली फल इनकी खुराक हैं। रात होने के पूर्व ये वृक्ष की शाखाओं का घोंसला बनाकर सोते हैं। 90 कि.ग्रा. के भारी भरकम नर ओरांगुटान को उनके गालों के गद्दे (फ्लेंज) तथा ज़ोरदार लंबी आवाज लगाने के लिए गले की थैली से आसानी से पहचाना जा सकता है।

ब्रुनेई तथा सुमात्रा में पाए जाने वाले ओरांगुटान व्यवहार तथा दिखने में कुछ भिन्न होते हैं। सुमात्रा के ओरांगुटान के परिवार में सदस्यों का एकदूसरे से जुड़ाव ज़्यादा होता है तथा चेहरे के बाल लंबे होते हैं। ब्रुनेई के ओरांगुटान पेड़ों को छोड़कर बेझिझक ज़मीन पर भी आ जाते हैं। हाल ही के वर्षों में दोनों प्रजातियों की आबादी में बेहद ज़्यादा गिरावट देखी गई है। एक शताब्दी पूर्व ही ब्रुनेई तथा सुमात्रा में इनकी संख्या 2,30,000 थी। अब ब्रुनेई में कुल जमा 1,04,700 तथा सुमात्रा में लगभग 7500 ओरांगुटान बचे हैं और इन्हें क्रमश: संकटग्रस्त व लुप्तप्राय श्रेणियों में रखा गया है। 2017 में तपानुली ओरांगुटान के नाम की नई प्रजाति उत्तरी सुमात्रा से खोजी गई है जिनकी संख्या केवल 800 है। यह वनमानुषों में सबसे कम है। नई प्रजाति सुमात्रा के बटांग तोरू के परिस्थितिक तंत्र में 1225 वर्ग कि.मी. के ऊंचाई पर स्थित घने जंगलों में पेड़ों पर मिलती है। ऐसा अनुमान है कि लगभग 10-20 हज़ार साल पहले ही बाकी ओरांगुटान प्रजातियों से अलग होकर तपानुली ओरांगुटान प्रजाति अस्तित्व में आई है। इनके आवास का क्षेत्रफल छोटा, बिखरा हुआ तथा संरक्षण से वंचित रहा है। इनके आवास क्षेत्र के अधिकांश हिस्से कृषि, सड़क या रेल मार्ग, शिकार, पनबिजली परियोजनाओं तथा बाढ़ के कारण सिकुड़ गए हैं।

यद्यपि इक्कीसवीं सदी में वनमानुष की नई प्रजाति खोजना उत्साहजनक है परंतु इनको संरक्षित करने की कार्रवाई तुरंत की जानी चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि नई खोजी गई प्रजाति हमारे सामने ही विलुप्त हो जाए। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : https://media.mnn.com/assets/images/2016/08/Orangutan-Sitting-Trees.jpg.638x0_q80_crop-smart.jpg

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