दाढ़ी-मूंछ रखने के फायदे और नुकसान – डॉ. ओ. पी. जोशी

फैशन के आयाम हमेशा बदलते रहते हैं। एक समय था जब क्लीन शेव रखना अच्छा माना जाता था परंतु अब दाढ़ी या मूंछ या दोनों ही रखना फैशन बनता जा रहा है। स्टाइलिश लुक देने के लिए दाढ़ीमूंछों के कई प्रकार भी हो गए हैं। इतिहास में झांककर देखें तो पता चलता है कि दाढ़ीमूंछ रखने की परंपरा काफी पुरानी है। साधु संत लोग दाढ़ीमूंछ रखते थे और आज भी रखते हैं। राजामहाराजाओं द्वारा दाढ़ीमूंछ रखना शौर्य व पराक्रम का प्रतीक माना जाता था, परंतु कुछ इसे नापसंद भी करते थे। सिकंदर को अपने सिपाहियों तथा तुर्की लोगों को अपने गुलामों का दाढ़ीमूंछ रखना नापसंद था। रूस के पीटर महान ने तो दाढ़ीमूंछ पर टैक्स लगाया था।

इतिहास कुछ भी रहा हो एवं फैशन में इसे कैसी भी मान्यता दी गई हो, परंतु अब दाढ़ीमूंछ वैज्ञानिकों, चर्म रोग के चिकित्सकों एवं पर्यावरणविदों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गई हैं। दाढ़ीमूंछ रखने या न रखने के पक्ष एवं विपक्ष में खेमे बन गए हैं एवं सभी के अपनेअपने तर्क एवं विचार हैं।

चर्मरोग विशेषज्ञ मानते हैं कि दाढ़ीमूंछ त्वचा की कई समस्याओं एवं रोगों से बचाती हैं। दाढ़ीमूंछ चेहरे की त्वचा को सूखी होने से तथा पराबैंगनी किरणों के हानिकारक प्रभाव से लगभग 90 प्रतिशत बचाती हैं और जीवाणुओं के संक्रमण व धूल आदि से भी बचाव करती है। चेहरे के कई दाग धब्बे, निशान एवं झुर्रियां भी दाढ़ीमूंछ छिपा लेती हैं।

अलबत्ता, धूल एवं प्रदूषणकारी पदार्थों की रोकथाम में दाढ़ीमूंछ की फिल्टर समान भूमिका को अब वैज्ञानिक सही नहीं मानते हैं। कुछ वर्ष पूर्व सोवियत संघ की चिकित्सा विज्ञान अकादमी में कार्यरत वैज्ञानिकों ने बताया था कि दाढ़ीमूंछ रखने वाले लोगों की सांस के साथ अंदर जा रही हवा में कई प्रकार के विषैले रसायन पाए जाते हैं। जैसे एसीटोन, बेंज़ीन, टालुईन, अमोनिया, फिनॉल तथा आइसोप्रोपेन। वैज्ञानिकों ने केवल दाढ़ी रखने वाले, केवल मूंछ रखने वाले, दाढ़ीमूंछ दोनों रखने वाले तथा दाढ़ीमूंछ दोनों रखने के साथ धूम्रपान करने वाले लोगों पर अलगअलग प्रयोग किए। परिणाम चौंकाने वाले तथा खतरनाक थे।

वैज्ञानिकों ने पाया कि केवल मूंछ एवं केवल दाढ़ी वाले लोगों की सांस में विषैले रसायन आसपास की वायु से क्रमश: 4.2 तथा 1.9 प्रतिशत ज़्यादा थे। दाढ़ीमूंछ दोनों होने पर यह मात्रा 7.2 प्रतिशत अधिक पाई गई। मूंछों वाले धूम्रपान प्रेमियों में विषैले रसायन 24.7 एवं दाढ़ी वालों में 18.2 प्रतिशत अधिक आंके गए। दाढ़ीमूंछ के साथ धूम्रपान करने वालों में ज़हरीले रसायन  40.2 प्रतिशत अधिक देखे गए। अध्ययन दर्शाता है कि दाढ़ीमूंछ के साथ धूम्रपान का शौक काफी खतरनाक है।

दाढ़ीमूंछ चेहरे की त्वचा को सुरक्षा देती है या सांस के साथ फेफड़ों में पहुंचने वाले प्रदूषण की मात्रा बढ़ाती है। इन दोनों तथ्यों पर दुनिया भर में चिकित्सकों एवं पर्यावरणविदों ने अध्ययन कर अपनेअपने विचार रखे हैं। ज़्यादातर चिकित्सकों का मत है कि दाढ़ी एवं मूंछ पूरे चेहरे को नहीं अपितु केवल उतने क्षेत्र को ही सुरक्षा प्रदान करती हैं जहां तक वे फैली होती हैं। कई प्रकरणों में तो दाढ़ीमूंछ के अंदर भी त्वचा पर संक्रमण का पैदा होना देखा गया है। दाढ़ीमूंछ स्थायी तौर पर रखने वाले धार्मिक एवं कुछ संप्रदाय के लोगों के चेहरे पर कभी संक्रमण नहीं हुआ हो, ऐसा भी नहीं है। दाढ़ीमूंछ के अलावा कई अन्य प्रयास भी लोगों द्वारा संक्रमण रोकने हेतु किए जाते हैं।

पर्यावरणविदों के मत भी तर्कसंगत तथा प्रासंगिक हैं। उनका कहना है कि आजकल लोग स्वास्थ्य, सुंदरता तथा फैशन के प्रति जागरूक हैं, इसलिए वे दिन में 3-4 बार चेहरे को धोते हैं। चेहरा धोने से प्रदूषणकारी पदार्थ पानी के साथ घुलकर बह जाते हैं और इस वजह से सांस के साथ ज़्यादा प्रदूषित पदार्थों का शरीर में प्रवेश करना संभव नहीं है। वैसे आजकल बालों के समान दाढ़ीमूंछ भी रंगी जाती हैं। डाई में उपस्थित रसायनों के शरीर में प्रवेश करने या न करने पर वैज्ञानिकों ने अभी तक कोई मत नहीं दिए हैं।

कुछ चिकित्सक एवं पर्यावरण वैज्ञानिकों ने दाढ़ीमूंछ के रखरखाव एवं सांस के द्वारा ज़हरीले रसायनों के प्रवेश के सम्बंधों पर भी अध्ययन किए है। दाढ़ीमूंछों के रखरखाव के तहत तेल आदि लगाने पर प्रदूषणकारी पदार्थ वहां चिपक जाते हैं एवं सांस के साथ शरीर में प्रवेश नहीं कर पाते हैं और यदि प्रवेश करते भी हैं तो उनकी मात्रा काफी घट जाती है। इसके विपरीत बगैर तेल लगी सूखी दाढ़ीमूंछों से ये पदार्थ सांस द्वारा तेज़ी से शरीर में पहुंचते है।

इस प्रकार दाढ़ीमूंछ, स्वास्थ्य व प्रदूषण के संदर्भ में वैज्ञानिकों, चिकित्सकों तथा पर्यावरणविदों ने अपनेअपने मत रखे हैं एवं तर्कों के आधार पर उन्हें सही या गलत बताया है। अब निर्णय आपको लेना है कि दाढ़ीमूंछ रखें या न रखें। (स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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