कंप्यूटर और संस्कृत भाषा – प्रतिका गुप्ता

ह बात आम बातचीत में अक्सर उभरती है कि संस्कृत कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा है और इसे वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है। इस बात का काफी समर्थन किया जा रहा है। यहां तक कि कुछ प्रदेशों की सरकारों ने बच्चों के लिए संस्कृत भाषा अनिवार्य विषय कर दिया है।

कंप्यूटर एक मशीन है जो निर्देशों पर काम करती है। इसके लिए निर्देश लिखने में किसी भाषा का उपयोग किया जाता है। कंप्यूटर उस भाषा में लिखे निर्देशों को पढ़ता है और उन्हीं निर्देशानुसार काम करता है। इसलिए इन निर्देशों को सटीकता से लिखा जाना ज़रूरी है।

कंप्यूटर उपयुक्त भाषा

कंप्यूटर की भाषा संदर्भमुक्त होनी चाहिए। संदर्भमुक्त भाषा यानी किसी निर्देश, वाक्य या शब्द का अर्थ संदर्भ पर आधारित ना हो। हम जो भाषा बोलते उसमें कई बार किसी वाक्य या शब्द का अर्थ इससे निकालते हैं कि वे किस बारे में कहा जा रहा है (जैसे सोना, हवा में उड़ना, उसको चमका देना वगैरह)। मशीन के लिए संदर्भ समझकर उस हिसाब से निर्देश लागू करना मुश्किल है और इसमें गड़बड़ियों की संभावना ज़्यादा है। इसलिए भाषा ऐसी हो जिसका अर्थ समझने के लिए किसी संदर्भ का उपयोग ना करना पड़े। सिर्फ वाक्य ही अपने आप में पूरा और एकमेव अर्थ व्यक्त करे। अर्थात एक वाक्य का एक ही अर्थ होना चाहिए।

कंप्यूटर जब निर्देशों को पढ़ता है तो पूरा वाक्य एक साथ पढ़कर मतलब समझने की बजाय उसे तोड़ता है। उसके वाक्य विन्यास को पढ़ता है और अर्थ निकालता है। भाषा ऐसी होना चाहिए कि उसके वाक्यों को तोड़ने पर उसका अर्थ ना बदले। कंप्यूटर इसे आसानी से पढ़कर निर्देशित कार्य कर सके।

कंप्यूटर की भाषा की मदद से सामान्य भाषा की बातों को इस रूप में बदला जाएगा जिसे कंप्यूटर समझ सके। यह काम इंसानों को करना होगा। अत: कंप्यूटर की भाषा सीखने में आसान होनी चाहिए ताकि कोई भी इसे सीख सके और काम कर सके।

कंप्यूटर की भाषा की एक विशेषता यह भी होगी उस भाषा के अक्षर मेमोरी में कम जगह घेरते हों। ज़्यादा जगह मतलब ज़्यादा कीमत। और ज़्यादा जगह घेरने वाली भाषा कार्य को पूरा करने का समय भी बढ़ा सकती है।

दुनिया में बोली जाने वाली समस्त भाषाएं (प्राकृतिक भाषाएं) संदर्भ आधारित हैं। यानी वाक्यों या शब्दों का अर्थ संदर्भ से निकलता है। इसलिए भाषा सम्बंधी गड़बड़ियों से बचने के लिए, कुछ वैज्ञानिकों का मत बना कि कंप्यूटर के लिए कृत्रिम भाषा बनाई जाए।

संस्कृत भाषा

संस्कृत भी एक प्राकृतिक भाषा है। ये ऐसी पहली भाषा मानी जाती है जिसके व्याकरण को सुव्यवस्थित तरीके से लिपिबद्ध किया गया था। इसके भाषा के नियमों को व्यवस्थित करने का काम  पाणिनी ने किया था। व्याकरण को लिखने में पाणिनी ने सहायक प्रतीकोंका उपयोग किया था। जिसमें शब्दों या वाक्यों के अर्थ में दोहरापन कम से कम करने के लिए शब्दों में नए प्रत्यय लगाए।

संस्कृत भाषा वाक्य के लगभग हर हिस्से में विभक्तियों का उपयोग करती है। यहां तक की किसी व्यक्ति, जगह के नाम के अंत में भी विभक्ति का सम्बंधित रूप का होता है। जिससे पता चलता है कि वह वाक्य में कर्ता है या कर्म। इसलिए संस्कृत में शब्द का स्थान इतना महत्वपूर्ण नहीं है। यदि किसी वाक्य में तीन शब्द हैं तो उन्हें लिखने के 6 संभावित क्रम होंगे (जैसे बुद्धम् शरणम् गच्छामि, इसे बुद्धम् गच्छामि शरणम् या शऱणम् गच्छामि बुद्धम् लिखा जा सकता है)। इसी तरह किसी वाक्य में 4 शब्द हैं तो उसको 24 संभावित क्रमों में लिखा जा सकता है। और इनमें से किसी भी तरीके से लिखने पर उस वाक्य का अर्थ नहीं बदलता। विभक्ति के उपयोग से सीमित शब्दों में वाक्य पूरा हो जाता है। पर सिर्फ संस्कृत ही ऐसी अकेली भाषा नहीं है ऐसी और भी भाषाएं हैं। जैसे लैटिन की यही स्थिति है।

संस्कृत और कंप्यूटर

फिलहाल संस्कृत देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। इसमें स्वर या व्यंजन मेमोरी में स्टोर होने के लिए 2 बाइट की जगह लेते हैं। स्वर या व्यंजनों से मिलकर बने अक्षर 4 से 8 बाइट तक की जगह घेरते हैं। जबकि लैटिन में एक अक्षर एक बाइट की जगह लेता है। उदाहरण के तौर पर लैटिन में लिखे Sanskritमें 8 अक्षर हैं इसे स्टोर करने में 8 बाइट लगेंगे। वहीं देवनागरी में संस्कृतलिखने में 18 बाइट लगेंगे। यानि संस्कृत को कंप्यूटर की भाषा बनाने से मेमोरी में स्टोरेज बढ़ेगा जो शायद कंप्यूटर के निर्देश पूरे करने में लगने वाले समय को बढ़ा दे और कंप्यूटर की लागत को भी।

कंप्यूटर की भाषा सीखनेसमझने में सरल होनी चाहिए। किंतु दुनिया में बहुत ही कम लोग हैं जो संस्कृत भाषा का उपयोग करते हैं, बोलचाल में तो शायद उतने भी नहीं करते।

संस्कृत में वाक्यों या शब्दों के संदर्भ आधारित होने की संभावना कम है पर एक प्राकृतिक भाषा होने के नाते संस्कृत पूरी तरह से संदर्भ मुक्त भाषा नहीं है। इन बातों को देखते हुए तो संस्कृत कंप्यूटर के लिए इतनी उपयुक्त भाषा नहीं लगती।

कैसे उठी संस्कृत की बात

80 के दशक में वैज्ञानिक कंप्यूटर के लिए बेहतर कृत्रिम भाषा बनाने जुटे हुए थे। जिसमें बोलचाल की भाषा की अस्पष्टताएं ना हो। कंप्यूटर के लिए कुछ कृत्रिम भाषाएं जैसे कोबोल, लिस्प, सी पहले ही बन चुकीं थी। इस संदर्भ में अमरीकी कंप्यूटर वैज्ञानिक रिक ब्रिग्स ने 1985 में एक पेपर प्रकाशित किया। इस पेपर में उन्होंने प्राकृतिक भाषाओं को कंप्यूटर की भाषा के तौर पर उपयोग करने के बारे में लिखा। इसमें उन्होंने संस्कृत को केस स्टडी के रूप में लिया। उन्होंने बताया कि कैसे संस्कृत का ढांचा बेहतर है और संस्कृत भाषा नियमबद्ध है और ये नियम स्पष्ट हैं। ये नियम कृत्रिम भाषा के नियमों के काफी करीब हैं। चूंकि संस्कृत में शब्दों के स्थान बदलने से उसके अर्थ पर फर्क नहीं पड़ता इसलिए कंप्यूटर में वाक्यों को तोड़ने और उसे क्रम में जमाने की समस्या कम आएगी। उन्होंने प्राचीन व्याकरण लिखने वालों के तरीकों का अध्ययन किया और ये सुझाव दिया कि प्राकृतिक भाषाओं को कंप्यूटर की भाषा के लिए उपयोग किया जा सकता है। किंतु इस पेपर की सिर्फ कुछ बातों को लिया गया और यह मान लिया गया कि संस्कृत सबसे उपयुक्त भाषा है।

यदि इस शोरगुल के चलते संस्कृत को कंप्यूटर की भाषा के तौर पर इस्तेमाल किया भी जाए तो क्या यह इतना आसान होगा? वर्तमान में एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद करने के लिए ही बेहतर सॉफ्टवेयर नहीं हैं तो पूरे मौजूदा तंत्र को संस्कृत भाषा के तंत्र में बदलना क्या आसान होगा? संस्कृत भाषा को जानने वाले लोग कम बहुत कम हैं। क्या इतने बड़े पैमाने पर नए लोगों को भाषा सिखाने, प्रोग्राम, सॉफ्टवेयर बनाने के लिए पर्याप्त समूह जुटा पाएंगे?(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।
Photo Credit : hari bhoomi

 

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