पोलियो ने फिर सिर उठाया

बात भारत की नहीं, कॉन्गो प्रजातांत्रिक गणतंत्र की है। अलबत्ता, कहीं की भी हो मगर यह बात अंतर्राष्ट्रीय चिंता का विषय है कि पोलियो ने फिर से बच्चों को लकवाग्रस्त किया है।

कॉन्गो प्रजातांत्रिक गणतंत्र (संक्षेप में कॉन्गो) में पोलियो के कारण 29 बच्चे लकवाग्रस्त हो चुके हैं और गत 21 जून को एक और मामला सामने आया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम ने इसे अत्यंत चिंताजनक घटना घोषित किया है जो पोलियो उन्मूलन के हमारे प्रयासों को वर्षों पीछे धकेल सकती है।

कॉन्गो में उभरे नए मामले पोलियो उन्मूलन के प्रयासों के सबसे कठिन हिस्से की ओर संकेत करते हैं। कॉन्गो में पोलियो के ये मामले उस कुदरती वायरस के कारण नहीं हुए हैं, जो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और शायद नाइजीरिया में अभी भी मौजूद है। कॉन्गो में लकवे के नए मामले ओरल पोलियो वैक्सीन (दो बूंद ज़िंदगी की) में इस्तेमाल किए गए दुर्बलीकृत वायरस के परिवर्तित रूप के कारण सामने आए हैं। वैक्सीन का यह दुर्बलीकृत वायरस प्रवाहित होता रहा और इसमें विभिन्न उत्परिवर्तन हुए और अंतत: इसने फिर से संक्रमण करने और लकवा पैदा करने की क्षमता अर्जित कर ली है।

वास्तव में मुंह से पिलाया जाने वाला पोलियो का टीका काफी सुरक्षित और कारगर माना जाता है और यही पोलियो उन्मूलन के प्रयासों का केंद्र बिंदु रहा है। इसकी एक खूबी है जो अब परेशानी का कारण बन रही है। टीकाकरण के बाद कुछ समय तक यह दुर्बलीकृत वायरस मनुष्य से मनुष्य में फैलता रहता है। इसके चलते उन लोगों को भी सुरक्षा मिल जाती है जिन्हें सीधे-सीधे टीका नहीं पिलाया गया था। मगर कई बार यह वायरस इस तरह से बरसों तक पर्यावरण में मौजूद रहकर उत्परिवर्तित होता रहता है और फिर से संक्रामक रूप में आ जाता है।

टीके से उत्पन्न पोलियो वायरस सबसे पहले वर्ष 2000 में खोजा गया था। इसकी खोज होते ही, विश्व स्वास्थ्य सभा ने घोषित किया था कि कुदरती वायरस के समाप्त होते ही मुंह से पिलाए जाने वाले टीके को बंद कर देना चाहिए। फिर 2016 में पता चला कि टीका-जनित पोलियो वायरस अब कहीं अधिक घातक हो चला है और यह कुदरती वायरस की अपेक्षा ज़्यादा लोगों को लकवाग्रस्त बना रहा है। उसके बाद से इसे एक वैश्विक समस्या मानते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन के पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम ने पोलियो उन्मूलन की रणनीति में कई बदलाव किए हैं और देशों को प्रसारित किए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि बदली हुई रणनीतियां कामयाब होंगी।(स्रोत फीचर्स)

नोट: स्रोत में छपे लेखों के विचार लेखकों के हैं। एकलव्य का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।

Photo Credit: Pakistan today

 

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